उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र में उज्जल भारत के भविष्य विपिन रावत का जन्म हुआ । विपिन रावत का पूरा नाम विपिन लक्ष्मण सिंह रावत था । उनकी मा पॉलीन कोच उत्तराखंड के उत्तरकाशी के एक पूर्व विधायक की बेटी थीं। राजपूत परिवार में जन्मे रावत की कई पीढ़ियां सेना में ही निर्वाचित रही थी उनके पिता लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत ने भी सालों तक देश की सेवा की और ये कहना गलत नहीं होगा कि देशभक्ति मानो खून में थी । पिता के सेना में होने के कारण बिपिन रावत में भी हमेशा से ही सेना में जाने का सपना देखा ।
विपिन रावत ने अपनी शुरुआती पढ़ाई शिमला से की इसके बाद वह देहरादून के इंडियन मिलट्री अकैडमी में गए और यहीं क्षण था जब विपिन रावत ने सेना में जाने के अपने सपने को उड़ान दी । बिपिन रावत को ट्रनिंग के दौरान बहुत ही प्रतिष्ठित स्कॉर्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया था। आपको बता दी कि की सेना में यह सम्मान उस कैडेट को मिलता है जो ट्रेनिंग के दौरान सबसे शानदार प्रदर्शन करता है । ट्रेनिंग पूरी करने के राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) के पूर्व छात्र रावत 16 दिसंबर 1978 में बतौर सेकंड लेफ्टिनेंट सेना में शामिल हुए और यहीं से उनका गौरवशाली सफर शुरू हुआ । विपिन रावत 11वीं गोरखा राइफल्स की पांचवी बटालियन के कमीशन के लिए चयनित किया गया ।
बाद में रावत प्रमोट कर ब्रिगेडियर बनाए गए। उन्होंने सोपोर में राष्ट्रीय राइफल्स के 5 सेक्टर की कमान संभाली। इसके बाद उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मिशन के तहत कांगो में एक मल्टीनेशनल ब्रिगेड की कमान संभाली। 1 जनवरी 2016 को जनरल बिपिन रावत दक्षिणी कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ नियुक्त हुए।
गोरखा ब्रिगेड से सीओएएस बनने वाले चौथे अधिकारी बनने से पहले रावत थल सेनाध्यक्ष बने। कहते है बिपिन रावत ने पूर्वोत्तर में आतंकवाद को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसमें उनके करियर का एक मुख्य आकर्षण म्यांमार में 2015 का सीमा पार ऑपरेशन था, जिसमें भारतीय सेना ने एनएससीएन-के आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर सफलतापूर्वक जवाब दिया था । समय यू ही बीत ता गया और रावत देश के सेवा में डटे रहे बता दें, कि जनरल रावत 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक की योजना का भी हिस्सा थे। जानकारी के मूताबिक रावत नई दिल्ली में साउथ ब्लॉक से घटनाक्रम की निगरानी कर रहे थे । 1 जनवरी साल 2020 वह क्षण आया जब बिपिन रावत भारत के पहले सीडीएस नियुक्त किए गए
cds भारतीय सेना का वह अहम पद है जो सेना के तीनों अंगों यानी जल थल और वायु सेना की कमान संभालता है ।
बिपिन रावत ने 43 साल भारतीय सेना में बिताए और इन सालो में जनरल रावत को परम विशिष्ट सेवा पदक, उत्तम युद्ध सेवा पदक जैसे कई सेना पदक से अलंकृत किया गया है।
हालांकि कई बार उनके बयानों को लेकर उनकी आलोचना भी हुई दरअसल
2017 में जनरल बिपिन रावत को उस वक्त आलोचनाओं का सामना करना पड़ा जब उन्होंने मेजर लीतुल गोगोई को सम्मानित किया। मेजर लीतुल गोगोई वो जवान थे जिन्होंने पत्थरबाजी कर रहे एक युवक को अपनी जीप के आगे बांधकर ढाल की तरह इस्तेमाल किया था. अपने इस फैसले का बचाव करते हुए जनरल बिपिन रावत ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘कश्मीर में हमारी सेना जिस तरह के डर्टी वॉर का सामना कर रही है, उससे निपटने के लिए इनोवेटिव तरीके ही जरूरी हैं.’
उन्होंने कहा था, ‘लोग हम पर पत्थर और पेट्रोल बम फेंक रहे हैं. ऐसे में अगर मेरे जवान मुझसे पूछते हैं- सर क्या किया जाए? तो क्या आर्मी चीफ के तौर पर अपनी टीम से ये कहूंगा- इंतजार करो और मर जाओ. मैं तिरंगा लगे अच्छे कॉफिन लाया हूं. तुम्हारे पार्थिव शरीर सम्मान के साथ घर पहुंचाए जाएंगे. याद रखिए, मुझे अपनी टीम का मनोबल ऊंचा रखना है. वो बेहद मुश्किल हालात में काम कर रहे हैं.’
कहा जाता है जनरल बिपिन रावत को हमेशा से ही पढ़ाई का काफी शौक था, उन्होंने मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से पीएचडी की यानी कि बिपिन रावत को डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त थी । रावत तमिलनाडु के विलिंगडन कॉलेज से डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज से एमफिल की पढ़ाई की । बता दें, यह वही कॉलेज है जहां बिपिन रावत बुधवार 8 दिंसबर 2021 को स्पीच देने के लिए जा रहे थे लेकिन पहुच नहीं पाए । जरा सोचिए ये जीवन कितने अनिश्चिताओं से भरा हुआ है आप इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि कब जिंदगी क्या मोड़ लेले । क्या बिपिन रावत ने कभी सोचा था या किसी ने भी ये कल्पना की थी जिस विलिंगडन कॉलेज से उन्होंने एमफिल की पढ़ाई की उसी कॉलेज में संबोधन देने जाना उनका आखिरी सफर बन जाएगा इसे संजोग नहीं तो और क्या कहेंगे ?
साहस और बलिदान के सफर में बिपिन रावत ने अपने देश के लिए बहुत से ऐसे काम किए जिन्हें इतिहास के पन्नों में याद रखा जाएगा और ये देश और यहां के लोग जनरल बिपिन रावत के इस कर्ज के सदा रिणी रहेंगे ।