मुंबई, महाराष्ट्र। महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में एक नया आदेश जारी किया है, जिसकी पूरे राज्य में खूब चर्चा हो रही है। गुरुवार को जारी इन दिशानिर्देशों में राज्य के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि वे किसी भी विधायक या सांसद के दफ्तर में आने पर उनके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करें। इस आदेश का उद्देश्य प्रशासन को जनप्रतिनिधियों के प्रति अधिक जवाबदेह और विश्वसनीय बनाना है।
जारी सरकारी आदेशों के अनुसार, यदि कोई विधायक या सांसद किसी अधिकारी के दफ्तर में आता है, तो अधिकारी को अपनी कुर्सी से खड़ा होना चाहिए और सम्मान के साथ उनकी बातों को सुनना चाहिए। बातचीत के दौरान विनम्रता का परिचय देना आवश्यक है। ये दिशानिर्देश अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों के प्रति सम्मानजनक और शिष्ट व्यवहार अपनाने का निर्देश देते हैं।
राज्य के मुख्य सचिव राजेश कुमार द्वारा जारी इस परिपत्र (जीआर) में कहा गया है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को उचित सम्मान देना सुशासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह प्रशासन को अधिक जवाबदेह और विश्वसनीय बनाता है, जिससे जनता का विश्वास सरकार में बढ़ता है। आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि इन निर्देशों का पालन न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब सत्तारूढ़ दलों सहित कुछ निर्वाचित प्रतिनिधियों ने अधिकारियों द्वारा उनसे मिलने या उनकी चिंताओं और समस्याओं का समाधान करने के लिए समय न देने पर नाराजगी व्यक्त की थी। जनप्रतिनिधियों ने अक्सर शिकायत की थी कि उनके पत्रों और अनुरोधों पर उचित ध्यान नहीं दिया जाता। इसी पृष्ठभूमि में सरकार ने यह कदम उठाया है ताकि जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के बीच समन्वय बेहतर हो सके। जीआर की प्रस्तावना में सरकार ने सुशासन, पारदर्शिता और दक्षता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बताया है।
नए दिशानिर्देशों में विस्तृत रूप से बताया गया है कि अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। जब कोई विधायक या सांसद किसी अधिकारी के दफ्तर में आता है, तो अधिकारियों को अपने सीट से खड़ा होना होगा और उनके साथ शिष्टाचार से पेश आना होगा। आदेश में यह भी कहा गया है कि अधिकारियों को विधायकों और सांसदों के दौरे के दौरान उनकी बात ध्यान से सुनना होगा। फोन पर भी विनम्र भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए ताकि संवाद में किसी प्रकार की कटुता न आए।
सरकार ने जनप्रतिनिधियों के पत्रों के संबंध में भी महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं। आदेश में कहा गया है कि हर दफ्तर में विधायक और सांसदों से मिले हर एक पत्र के लिए एक अलग रजिस्टर रखा जाना चाहिए। इन पत्रों का जवाब दो महीने के अंदर देना अनिवार्य होगा। यदि किसी मामले में समय पर जवाब देना संभव नहीं है, तो उस मामले को संबंधित विभाग के प्रमुख के पास भेजा जाना चाहिए और संबंधित विधायक या सांसद को औपचारिक रूप से देरी के बारे में सूचित किया जाना चाहिए। इससे जनप्रतिनिधियों को अपने पत्रों की स्थिति के बारे में जानकारी मिलती रहेगी।
इन नए दिशानिर्देशों को लेकर राज्य में खूब चर्चा हो रही है। कुछ लोग इसे जनप्रतिनिधियों के सम्मान को सुनिश्चित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम बता रहे हैं, वहीं कुछ अन्य का मानना है कि इससे अधिकारियों पर अनावश्यक दबाव बढ़ सकता है। हालांकि, सरकार का मानना है कि यह कदम प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के बीच संबंधों को मजबूत करेगा, जिससे अंततः जनता को बेहतर सेवाएं मिलेंगी। यह आदेश महाराष्ट्र में सुशासन और जवाबदेही को बढ़ावा देने के राज्य सरकार के प्रयासों का एक हिस्सा है।
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