SC: तेलंगाना सरकार को ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट से झटका, 50% सीमा बरकरार

नई दिल्ली। तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार को सर्वोच्च न्यायालय से एक बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदायों के लिए आरक्षण बढ़ाने संबंधी राज्य सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें तेलंगाना उच्च न्यायालय के अंतरिम स्थगन आदेश को चुनौती दी गई थी।

दरअसल, तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार ने राज्य में ओबीसी के लिए आरक्षण सीमा को बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का निर्णय लिया था। इस फैसले को तेलंगाना उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जिसने इस पर अंतरिम रोक लगा दी थी।

इसके बाद, राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के इस फैसले को शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने भी उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और राज्य सरकार की याचिका को खारिज कर दिया।

क्या है पूरा मामला?
तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार ने हाल ही में ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था। इस संबंध में एक प्रस्ताव विधानसभा में लाया गया था और उसे पारित भी कर दिया गया। हालांकि, कांग्रेस सरकार के इस कदम के खिलाफ उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरक्षण सीमा बढ़ाने को चुनौती दी गई।

इस मामले में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने राज्य सरकार की अर्जी को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि जाति आधारित आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं की जा सकती है और इस बात का ध्यान रखना होगा। गौरतलब है कि 1992 के इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत आरक्षण को 50 प्रतिशत तक सीमित कर दिया था।

राज्य सरकार ने कोर्ट में दिया ये तर्क
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार ने तर्क दिया कि कोटा बढ़ाने का उद्देश्य स्थानीय निकाय चुनावों के लिए ओबीसी को 42 प्रतिशत आरक्षण देना है। राज्य सरकार ने अपने फैसले को एक सही नीति करार दिया।

राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सभी पार्टियों का एकमत प्रस्ताव इस नीति का समर्थन करता है। उन्होंने सवाल उठाया कि बिना दलील के इस पर रोक कैसे लगाई जा सकती है? उन्होंने जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ से कहा कि जब इसे विधानसभा ने सर्वसम्मति से पारित किया था, तो ये लोग कौन होते हैं बिना दलील के रोक लगाने वाले?

हालांकि, राज्य सरकार की दलील के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। अब उच्च न्यायालय की ओर से आरक्षण बढ़ाने के फैसले पर लागू यह अंतरिम आदेश जारी रहेगा। उच्च न्यायालय ने 9 अक्टूबर को इस मामले में सुनवाई की थी और राज्य सरकार से 4 हफ्ते में जवाब मांगा था।

 

Pls reaD:SC: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची से हटाए गए 3.66 लाख मतदाताओं का ब्योरा मांगा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *