शिमला। हिमाचल प्रदेश की नदियों में भारी मात्रा में बहकर आई लकड़ियों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की गंभीर टिप्पणी के बाद वन विभाग हरकत में आ गया है। विभाग ने इस पूरे मामले की नए सिरे से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। अतिरिक्त मुख्य सचिव वन, कमलेश कुमार पंत ने विभाग को विशेष रूप से रावी और ब्यास नदियों में बहकर आई लकड़ियों की नई रिपोर्ट तैयार करने को कहा है। इस रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार अपना जवाब तैयार करेगी, जिसे सुप्रीम कोर्ट में दायर किया जाएगा।
वन विभाग के फील्ड अधिकारी अब इस कार्य में जुट गए हैं। इसके लिए संबंधित क्षेत्रों में ड्रोन से भी मैपिंग करवाई जाएगी, ताकि कोर्ट को वस्तुस्थिति से सटीक रूप से अवगत करवाया जा सके। नदियों में बड़े पैमाने पर बहकर आई लकड़ी के बाद से ही यह सवाल उठ रहा है कि आखिर “हिमाचल का पुष्पा” कौन है? इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुई तस्वीरें फिल्म ‘पुष्पा’ में बांध से चंदन की तस्करी के दृश्यों की तरह प्रतीत हो रही थीं, जिससे अवैध कटान की आशंकाओं को बल मिला।
दो पन्नों की रिपोर्ट में दी थी क्लीन चिट
याद रहे कि हिमाचल के कुल्लू में 24 जून को बादल फटने के बाद आई बाढ़ में सैकड़ों टन लकड़ियां बहकर पंडोह डैम तक पहुंची थीं। इसकी तस्वीरें सामने आने के बाद इंटरनेट मीडिया पर खूब वायरल हुई थीं। इसके बाद वन विभाग ने एक जांच बैठाई थी। हालांकि, दो पन्नों की उस प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में मामले में पूरी तरह क्लीन चिट दी गई थी। जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि इसमें किसी भी प्रकार की कोई अनियमितताएं नहीं पाई गई हैं और ये वो लकड़ियां थीं जो फ्लैश फ्लड के कारण टूटकर पंडोह डैम पहुंची थीं।
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया था कि अवैध कटान का कोई निशान नहीं मिला था। रिपोर्ट में बताया गया था कि “शिलागढ़ में जिस जगह बादल फटा है, उससे करीब 20 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है। 6,000 हेक्टेयर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के वन क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचा है। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में जो पेड़ गिर जाते हैं उसे उठाया भी नहीं जाता। वह पेड़ वहीं सड़ जाते हैं।”
मंत्री ने उठाए थे सवाल
हालांकि, इस मामले में संसदीय कार्य मंत्री हर्ष वर्धन चौहान ने विभाग की कार्यप्रणाली पर ही गंभीर सवाल खड़े कर दिए थे। हर्षवर्धन चौहान ने कहा था कि “वन विभाग के आला अधिकारी फील्ड में जाते ही नहीं। जंगलों को गार्ड के भरोसे छोड़ा गया है। आईएफएस अधिकारी और संबंधित डीएफओ जंगलों का मुआयना करने जाते ही नहीं हैं।”
उन्होंने आगे कहा था कि “नदियों में यदि पूरा पेड़ आ जाता है तो समझ आता है कि वह बहकर आया होगा। भारी संख्या में स्लीपर, लॉग बहकर आए हैं, वह प्रश्न चिह्न खड़ा करते हैं कि कटान हुआ है।” उन्होंने यह भी जोड़ा था कि अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों के जंगलों में किसी तरह की निगरानी विभाग की नहीं है और यहां पर पेड़ किस तरह से कट रहे हैं, इसमें बारीकी से सोचने की जरूरत है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल समेत पंजाब, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में बाढ़ जैसे हालात पर चिंता जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि “मीडिया रिपोर्ट में जिस प्रकार दिखाया गया है कि लकड़ियां बहकर आई हैं, वह गंभीर विषय है।” सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल समेत पंजाब, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर को भी नोटिस जारी कर तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। अब राज्य सरकार को अगली सुनवाई में इसका विस्तृत जवाब देना होगा। यह मामला अब केंद्र और राज्य सरकार दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है, क्योंकि उन्हें इस गंभीर पर्यावरणीय मुद्दे पर संतोषजनक जवाब प्रस्तुत करना होगा।
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