चंडीगढ़: पंजाब में किसानों और भूमि मालिकों के भारी विरोध का सामना कर रही भगवंत मान सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए अपनी विवादास्पद ‘लैंड पूलिंग नीति’ को वापस ले लिया है। गुरुवार को हुई कैबिनेट की बैठक में इस नीति को रद्द करने का प्रस्ताव रखा गया, जिसे बिना किसी विरोध के तत्काल मंजूरी दे दी गई। इस फैसले से राज्य में विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए 65,000 एकड़ से अधिक भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया पर तत्काल प्रभाव से रोक लग गई है। इसे ज़मीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों की एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है।
तत्काल जारी हुई अधिसूचना, सभी प्रक्रियाएं रद्द
कैबिनेट की बैठक में जैसे ही लैंड पूलिंग नीति को रद्द करने का एजेंडा पारित हुआ, शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव विकास गर्ग ने तुरंत इसकी आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी। इस अधिसूचना में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इस नीति के तहत अब तक की गई सभी कार्रवाइयां तत्काल प्रभाव से रद्द की जाती हैं।
अधिसूचना के अनुसार, भूमि अधिग्रहण के लिए अधिसूचित किए गए सभी खसरा नंबर, भूमि मालिकों से प्राप्त की गई आपत्तियां या सहमतियां, और जारी किए गए सभी आशय पत्र (Letter of Intent – LOI) अब अमान्य माने जाएंगे। सरकार के इस कदम का मतलब है कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया अब पूरी तरह से समाप्त हो गई है।
अधिग्रहीत भूमि मालिकों को वापस मिलेगी, नहीं लगेगा कोई शुल्क
सरकार ने उन भूमि मालिकों को भी बड़ी राहत दी है जिनकी जमीन इस नीति के तहत प्रत्यक्ष खरीद के माध्यम से पहले ही अधिग्रहीत कर ली गई थी। अधिसूचना में स्पष्ट किया गया है कि खरीदी गई भूमि के सभी खसरा नंबर और संबंधित विभाग या प्राधिकरण के पक्ष में किए गए पंजीकरण को रद्द करके भूमि को मूल मालिकों के नाम पर वापस हस्तांतरित किया जाएगा।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पूरी प्रक्रिया में भूस्वामियों और किसानों को कोई स्टांप शुल्क या पंजीकरण शुल्क नहीं देना होगा। सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि ज़मीन वापसी की प्रक्रिया उनके लिए पूरी तरह से मुफ्त और सुगम हो।
क्यों हो रहा था नीति का विरोध?
यह लैंड पूलिंग नीति शुरुआत से ही विवादों में घिरी हुई थी। किसान संगठन और भूमि मालिक इसका पुरजोर विरोध कर रहे थे। उनका आरोप था कि सरकार इस नीति की आड़ में बड़े पैमाने पर उनकी उपजाऊ कृषि भूमि को कौड़ियों के भाव अधिग्रहीत करना चाहती है, ताकि उसे शहरी विकास और औद्योगिक परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जा सके। किसानों को डर था कि इससे उनकी आजीविका छिन जाएगी और उन्हें उचित मुआवजा भी नहीं मिलेगा। राज्य भर में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों और किसानों के दबाव के कारण अंततः सरकार को यह फैसला लेने पर मजबूर होना पड़ा।