नैनीताल। उत्तराखंड की जेलों में बंदियों और कैदियों की दयनीय स्थिति का मामला एक बार फिर नैनीताल हाईकोर्ट पहुंच गया है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में राज्य की निराशाजनक रैंकिंग का हवाला देते हुए, उत्तराखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (सालसा) ने खुद एक जनहित याचिका दायर की है, जिसमें जेलों की भीड़ कम करने और खाली पड़े पदों को भरने सहित कई सुधारों की मांग की गई है।
पहले भी हाईकोर्ट द्वारा जेलों की दशा में सुधार को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए गए थे, लेकिन जमीनी स्तर पर हालात नहीं सुधरे। अब विधिक सेवा प्राधिकरण ने इस मामले में सीधे हस्तक्षेप किया है।
याचिका में की गईं प्रमुख मांगें
प्राधिकरण ने अपनी जनहित याचिका में अदालत से गुहार लगाई है कि वह सरकार को निम्नलिखित निर्देश दे:
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जमानत, पैरोल और छूट की प्रक्रियाओं में तेजी लाकर तथा मुकदमों का त्वरित निस्तारण कर छह महीने के भीतर जेलों में भीड़भाड़ कम की जाए।
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इस संबंध में सरकार द्वारा त्रैमासिक अनुपालन रिपोर्ट (Quarterly Compliance Report) अदालत में प्रस्तुत की जाए।
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जेलों में खाली पड़े 29 प्रतिशत पदों को छह महीने के भीतर भरा जाए।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस याचिका को एक अन्य समान याचिका के साथ जोड़कर सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट ने खोली पोल
यह जनहित याचिका इस साल की इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के निराशाजनक आंकड़ों के आधार पर दायर की गई है। इस रिपोर्ट में न्याय वितरण प्रणाली के मामले में उत्तराखंड को 18 बड़े राज्यों की सूची में 16वें स्थान पर रखा गया है, जो बेहद खराब और निराशाजनक प्रदर्शन को दर्शाता है।
यह रैंकिंग चार प्रमुख स्तंभों पर आधारित है: पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता। रिपोर्ट सरकारी आंकड़ों का उपयोग करके ही हर राज्य की न्याय प्रदान करने की क्षमता का आकलन करती है।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव प्रदीप मणि त्रिपाठी ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि राज्य का प्रदर्शन इन सभी चार स्तंभों में खराब पाया गया है। रिपोर्ट में अपर्याप्त पुलिस-जनसंख्या अनुपात, जेलों में विचाराधीन कैदियों की भारी संख्या और कानूनी सहायता पर अपर्याप्त सरकारी खर्च जैसे गंभीर मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी चिंता जताई गई है कि राज्य की न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में भारी असमानता है और वर्तमान में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में एक भी महिला न्यायाधीश नहीं है। रिपोर्ट ने राज्य सरकार को अपनी निम्न रैंकिंग के कारणों की जांच करने और न्याय व्यवस्था में तत्काल सुधार के लिए कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया है।