धराली। उत्तराखंड के धराली में आई विनाशकारी आपदा के बाद, एनडीआरएफ और सेना की टीमें मलबे के विशाल ढेर में जिंदगी के निशान खोजने के लिए युद्धस्तर पर जुटी हुई हैं। जिस तरह इस जलप्रलय के साथ आए भारी मलबे में बड़े-बड़े होटल, गेस्ट हाउस और होमस्टे जमींदोज हो गए हैं, उसे देखते हुए बचाव दल किसी भी चमत्कार की उम्मीद में हर संभव प्रयास कर रहा है।
सावधानी और तकनीक का तालमेल
आपदा की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भवनों वाली जगह पर भारी मशीनों से खुदाई नहीं की जा सकती है। बचाव दलों का मानना है कि यदि मलबे के नीचे कोई किसी तरह जीवित भी हुआ, तो भारी मशीनों के प्रयोग से उसके बचने की आखिरी गुंजाइश भी खत्म हो जाएगी। इसी चुनौती से निपटने के लिए बचाव अभियान में अत्याधुनिक तकनीक का सहारा लिया जा रहा है। रविवार को ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) और सोमवार को रेस्क्यू रडार को भी धरातल पर उतार दिया गया है, ताकि मलबे के नीचे दबी जिंदगियों का पता लगाया जा सके।
ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) से मिलीं संरचनाएं
एनडीआरएफ की टीम के अनुसार, जीपीआर 50 मीटर की गहराई तक मौजूद वस्तुओं का पता लगा सकता है। रविवार से इसका प्रयोग शुरू किया गया और अब तक निचले क्षेत्रों में स्कैनिंग की गई है। इस स्कैनिंग के दौरान ढाई से तीन मीटर की गहराई में अब तक 20 ऐसी जगहें मिली हैं, जहां भवनों या उनके जैसे अन्य ढांचों के होने का पता चला है। तीन मीटर से नीचे हल्का मलबा और फिर ठोस धरातल पाया गया है।
इस खोज से यह उम्मीद की जा रही है कि वहां शव हो सकते हैं या शायद कोई जीवित भी मिल सकता है। चूंकि, यहां की मिट्टी दलदली है और लगातार धंस रही है, इसलिए बचाव दल हर संभावना को ध्यान में रखकर काम कर रहा है। जिन स्थलों पर जिंदगी के संकेत मिलने की थोड़ी भी उम्मीद है, उन्हें चिह्नित कर वहां मशीनों का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया गया है और हाथ से प्रयोग किए जाने वाले औजारों से सावधानीपूर्वक खुदाई की जा रही है।
‘धड़कन’ खोजने उतरा रेस्क्यू रडार
जिंदगी की तलाश को और सुदृढ़ करने के लिए सोमवार से रेस्क्यू रडार को भी धराली में उतार दिया गया है। इस उपकरण का संचालन कर रहे एक तकनीकी अधिकारी के अनुसार, रेस्क्यू रडार रेडियो फ्रीक्वेंसी पर काम करता है और 500 मेगाहर्ट्ज पर संचालित होता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह मलबे में 10 मीटर की गहराई तक किसी भी मानव की स्थिति का पता लगा सकता है। यदि मलबे में दबे किसी व्यक्ति की धड़कन बाकी है या उसके शरीर में कोई भी हलचल हो रही है, तो यह रडार तुरंत संकेत भेज देगा।
सोमवार को धराली के मलबे से भरे विभिन्न क्षेत्रों में इसका प्रयोग भी किया गया। हालांकि, शाम तक इसके माध्यम से कोई सकारात्मक संकेत प्राप्त नहीं किया जा सका था।
ग्राउंड जीरो पर काम कर रहे एनडीआरएफ के अधिकारियों के अनुसार, यह एक कठिन और लंबा अभियान है। जब तक मलबे से भरे पूरे क्षेत्र को पूरी तरह से स्कैन और चिह्नित नहीं कर दिया जाता, तब तक जीपीआर और रेस्क्यू रडार जैसे उपकरणों का प्रयोग लगातार जारी रहेगा।
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