नई दिल्ली: करीब 16 साल के लंबे इंतजार के बाद, 2008 के मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में आज मुंबई की एक विशेष एनआईए अदालत ने अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुना दिया। अदालत ने सबूतों के अभाव में भारतीय जनता पार्टी की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित समेत सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है। इस फैसले ने दशकों पुराने इस मामले पर विराम लगा दिया है, जो अपने राजनीतिक उतार-चढ़ाव और “भगवा आतंकवाद” जैसे मुहावरों के कारण लगातार चर्चा में रहा।
विशेष एनआईए अदालत के जज ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में पूरी तरह से विफल रहा कि आरोपियों का इस विस्फोट से कोई सीधा संबंध था। जज ने टिप्पणी की, “अभियोजन पक्ष ने यह तो सिद्ध कर दिया कि मालेगांव में एक विस्फोट हुआ था, लेकिन वे यह साबित नहीं कर पाए कि जिस मोटरसाइकिल में बम रखा गया था, वह आरोपियों द्वारा ही वहां लाई गई थी।” अदालत ने जांच में कुछ विसंगतियों की ओर भी इशारा किया, जिसमें कहा गया कि कुछ घायलों के मेडिकल सर्टिफिकेट में हेरफेर की गई थी और उनकी उम्र को गलत तरीके से दर्शाया गया था।
यह मामला 29 सितंबर, 2008 का है, जब महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में भिक्कू चौक के पास एक जोरदार धमाका हुआ था। एक मोटरसाइकिल में लगाए गए बम से हुए इस विस्फोट में छह लोगों की जान चली गई थी और 100 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। यह घटना उस समय हुई जब लोग रमजान के महीने में नमाज की तैयारी कर रहे थे।
मामले की शुरुआती जांच महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने की थी। जांच ने तब एक बड़ा मोड़ लिया जब एटीएस ने हिंदू दक्षिणपंथी समूहों से जुड़े लोगों को गिरफ्तार करना शुरू किया। इसी दौरान “भगवा आतंकवाद” शब्द पहली बार राजनीतिक विमर्श में आया, जिसने देशव्यापी बहस छेड़ दी। इस मामले में साध्वी प्रज्ञा और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के अलावा अन्य पांच लोगों को भी आरोपी बनाया गया था।
साल 2011 में मामले की जटिलता और इसके राष्ट्रीय प्रभाव को देखते हुए जांच का जिम्मा राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया गया। एनआईए ने अपनी जांच के बाद 2016 में एक पूरक आरोपपत्र दायर किया। लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद साल 2018 में सातों आरोपियों के खिलाफ औपचारिक रूप से आरोप तय किए गए और मुकदमा शुरू हुआ। मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, लेकिन इनमें से 40 गवाह अपने पहले के बयानों से मुकर गए, जिससे अभियोजन का पक्ष कमजोर हो गया।
इस साल अप्रैल में अंतिम बहस पूरी होने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज के इस फैसले के साथ ही, भारतीय न्यायपालिका के सबसे लंबे और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में से एक का अंत हो गया है, जिसमें सभी आरोपियों को निर्दोष करार दिया गया है।