नई दिल्ली।
संसद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चल रही अहम बहस में जहाँ कांग्रेस नरेंद्र मोदी सरकार पर हमलावर होने की रणनीति बना रही है, वहीं पार्टी के भीतर की दरारें खुलकर सामने आ गई हैं। यह बहस अब विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के लिए दोहरी मुसीबत बन गई है, क्योंकि एक तरफ सरकार को घेरने की चुनौती है तो दूसरी तरफ अपनी ही आंतरिक कलह को संभालना मुश्किल हो रहा है। पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं, शशि थरूर और मनीष तिवारी, का इस बहस से किनारा करना इस अंदरूनी घमासान का सबसे बड़ा सबूत बनकर उभरा है।
इस आंतरिक कलah को हवा आनंदपुर साहिब से सांसद मनीष तिवारी की एक सोशल मीडिया पोस्ट ने दी। मंगलवार को उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक न्यूज़ रिपोर्ट का स्क्रीनशॉट साझा किया, जिसमें यह बताया गया था कि वह और शशि थरूर संसद की बहस में क्यों हिस्सा नहीं ले रहे हैं। इस पोस्ट के साथ उन्होंने 1970 की मशहूर फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ के देशभक्ति गीत की पंक्तियाँ लिखीं, “है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं, भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं। जय हिंद।” इस पोस्ट को सीधे तौर पर पार्टी लाइन से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को प्राथमिकता देने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
तिवारी की तरह ही, वरिष्ठ नेता और पूर्व राजनयिक शशि थरूर की चुप्पी भी कई सवाल खड़े कर रही है। विदेश नीति और कूटनीति पर अपनी विशेषज्ञता के लिए जाने जाने वाले थरूर का नाम कांग्रेस के वक्ताओं की सूची से गायब होना हर किसी के लिए चौंकाने वाला है। हाल ही में थरूर ने यह कहकर पार्टी नेतृत्व के साथ अपनी तनातनी को और स्पष्ट कर दिया था कि उनकी “पहली वफादारी” देश के प्रति है, न कि किसी पार्टी के प्रति। उन्होंने कहा था, “पार्टियां तो देश को बेहतर बनाने का एक जरिया मात्र हैं।”
मामले की गंभीरता इस बात से और बढ़ जाती है कि थरूर और तिवारी दोनों उस उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे, जिसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत की वैश्विक कूटनीति का पक्ष रखने के लिए विदेश भेजा गया था। यह एक बड़ी विडंबना है कि जिन नेताओं को सरकार ने भारत का पक्ष अंतरराष्ट्रीय मंच पर रखने के लिए चुना, उन्हीं नेताओं को उनकी अपनी पार्टी संसद में बोलने का मौका नहीं दे रही है।
कांग्रेस की इस अंदरूनी फूट ने भारतीय जनता पार्टी को हमला करने का एक सुनहरा मौका दे दिया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता बैजयंत जय पांडा ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा, “कांग्रेस में कई नेता अच्छा बोल सकते हैं। मेरे मित्र शशि थरूर जी, जो एक शानदार वक्ता हैं, उन्हें उनकी ही पार्टी बोलने नहीं दे रही है।”
कुल मिलाकर, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर सरकार को घेरने की कांग्रेस की कोशिश उल्टी पड़ती दिख रही है। यह प्रकरण पार्टी के भीतर राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर मौजूद गहरे वैचारिक मतभेदों को उजागर कर रहा है और विपक्ष के तौर पर उसकी एकजुटता पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।