शिमला। प्राकृतिक आपदा की मार झेल रहा हिमाचल प्रदेश गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। इस दोहरी चुनौती से निपटने के लिए राज्य की सुक्खू सरकार ने एक हजार करोड़ रुपये का नया ऋण लेने का फैसला किया है। यह कदम राज्य की वित्तीय स्थिति के लिए एक ऐतिहासिक और चिंताजनक मोड़ है, क्योंकि इस नई उधारी के साथ प्रदेश पर कुल कर्ज का बोझ पहली बार एक लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर जाएगा।
ऐतिहासिक कर्ज और भविष्य की चुनौती
प्रदेश सरकार यह ऋण 22 वर्षों की लंबी अवधि के लिए ले रही है, जिसकी अदायगी 30 जुलाई 2047 तक करनी होगी। इस ऋण के लिए नीलामी प्रक्रिया 29 जुलाई को भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से आयोजित की जाएगी और 30 जुलाई तक यह राशि राज्य सरकार के खजाने में जमा हो जाएगी। इस नए ऋण के बाद प्रदेश पर कुल कर्ज का बोझ बढ़कर 1,00,075 करोड़ रुपये (एक लाख पचहत्तर करोड़ रुपये) तक पहुंच जाएगा। यह आंकड़ा राज्य की कमजोर आर्थिक सेहत की तस्वीर पेश करता है, जो प्राकृतिक आपदा के कारण और भी विकट हो गई है।
वित्तीय संकट का असर कर्मचारियों पर भी
राज्य का गहराता वित्तीय संकट अब सीधे तौर पर सरकारी कर्मचारियों को भी प्रभावित कर रहा है। सरकार ने 15 मई 2025 से कर्मचारियों को तीन प्रतिशत महंगाई भत्ता (DA) देने की घोषणा तो की थी, लेकिन प्रतिकूल वित्तीय परिस्थितियों के कारण इसे अभी तक लागू नहीं किया जा सका है। इससे कर्मचारियों में निराशा है और यह सरकार के सामने खड़ी आर्थिक चुनौतियों को दर्शाता है।
सीमित संसाधनों से चलाना होगा काम
मौजूदा नियमों के अनुसार, प्रदेश सरकार चालू वित्त वर्ष में कुल सात हजार करोड़ रुपये तक का कर्ज ले सकती है। इस नए ऋण के बाद जुलाई के अंत तक सरकार लगभग 5200 करोड़ रुपये की उधारी ले चुकी होगी। इसका मतलब है कि वित्त वर्ष के बाकी बचे आठ महीनों के लिए सरकार के पास कर्ज लेने की सीमा केवल 1800 करोड़ रुपये ही शेष बचेगी। ऐसे में सरकार को आगामी महीनों में सीमित संसाधनों के साथ ही आपदा राहत, पुनर्वास और अन्य विकास कार्यों को आगे बढ़ाना होगा।
केंद्र से ऋण सीमा बढ़ाने की गुहार
इस विकट स्थिति से उबरने के लिए प्रदेश सरकार ने केंद्र से मदद की उम्मीद जताई है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात कर ऋण की सीमा बढ़ाने का आग्रह किया है। सरकार का तर्क है कि हालिया प्राकृतिक आपदा को देखते हुए राहत और पुनर्वास कार्यों में तेजी लाने के लिए अतिरिक्त धनराशि की आवश्यकता है, जिसके लिए केंद्र सरकार को ऋण सीमा में छूट देनी चाहिए। अब सबकी निगाहें केंद्र के फैसले पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि हिमाचल को इस आर्थिक भंवर से निकलने में कितनी मदद मिलती है।
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