नई दिल्ली। अमेरिकी इतिहास के एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील अध्याय को खोलते हुए, ट्रंप प्रशासन ने नागरिक अधिकार आंदोलन के महानायक मार्टिन लूथर किंग जूनियर से जुड़े एफबीआई (FBI) के लगभग 2,00,000 पन्नों के गोपनीय रिकॉर्ड को सार्वजनिक कर दिया है। यह कदम किंग के परिवार और कई नागरिक अधिकार संगठनों की इच्छा के विरुद्ध उठाया गया है, जो इन निजी दस्तावेजों को गोपनीय ही रखना चाहते थे।
यह विशाल रिकॉर्ड साल 1977 से एक अदालत के आदेश के तहत राष्ट्रीय अभिलेखागार में गुप्त रखा गया था। एफबीआई ने ये सभी दस्तावेज अब राष्ट्रीय अभिलेखागार विभाग को सौंप दिए हैं, जहाँ वे आम जनता और शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध होंगे। इन दस्तावेजों में किंग के जीवन, उनके भाषणों, उनकी गतिविधियों और एफबीआई द्वारा उन पर रखी गई निगरानी का विस्तृत ब्योरा शामिल होने की उम्मीद है, जिसने दशकों से इतिहासकारों और षड्यंत्र सिद्धांतकारों को आकर्षित किया है।
परिवार ने जताई चिंता
इस फैसले पर मार्टिन लूथर किंग जूनियर के परिवार ने एक सधी हुई लेकिन चिंताजनक प्रतिक्रिया दी है। किंग के बच्चों, मार्टिन लूथर किंग तृतीय और बर्निस किंग ने एक संयुक्त बयान में स्वीकार किया कि उनके पिता से जुड़ी जानकारी हमेशा से लोगों की दिलचस्पी का विषय रही है। हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा, “यह जानकारी बहुत निजी है और लोगों को इसे पूरे ऐतिहासिक संदर्भ में ही समझना चाहिए।” उनके बयान से यह स्पष्ट है कि वे इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आधी-अधूरी या संदर्भ से बाहर की जानकारी उनके पिता की महान विरासत को नुकसान पहुंचा सकती है।
ट्रंप का पारदर्शिता का दावा
यह पहली बार नहीं है जब डोनाल्ड ट्रंप ने इस तरह के ऐतिहासिक और गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का फैसला किया है। राष्ट्रपति चुनाव से पहले उन्होंने वादा किया था कि वे पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी की 1963 में हुई हत्या से जुड़े गोपनीय दस्तावेजों को भी जारी करेंगे, जिसे उन्होंने बाद में पूरा भी किया।
इसी साल जनवरी में, ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें 1968 में हुई रॉबर्ट एफ. कैनेडी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्याओं से संबंधित सभी शेष दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया था। इसी आदेश के तहत, मार्च महीने में जॉन एफ. कैनेडी की हत्या से जुड़े हजारों गुप्त दस्तावेज पहले ही जारी किए जा चुके हैं।
इन दस्तावेजों के सार्वजनिक होने से अब इतिहासकारों को अमेरिका के सबसे अशांत दौरों में से एक को और गहराई से समझने का मौका मिलेगा। हालांकि, यह कदम इस बहस को भी तेज करेगा कि किसी ऐतिहासिक व्यक्ति की विरासत और निजता के अधिकार पर “जनता के जानने के अधिकार” को कितनी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
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