देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में इस वर्ष का हरेला पर्व एक ऐतिहासिक जनआंदोलन का प्रतीक बनने जा रहा है। राज्य सरकार ने 16 जुलाई, 2025 को हरेला पर्व के पहले दिन प्रदेशभर में 5 लाख पौधे रोपित कर एक नया कीर्तिमान स्थापित करने का संकल्प लिया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में इस वर्ष की थीम “हरेला का त्योहार मनाओ, धरती माँ का ऋण चुकाओ – एक पेड़ माँ के नाम” रखी गई है, जिसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को एक भावनात्मक और पारिवारिक अभियान से जोड़ना है।
सिर्फ पर्व नहीं, एक पवित्र परंपरा
उत्तराखंड की संस्कृति में हरेला मात्र एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की एक जीवंत और पवित्र परंपरा है। यह पर्व राज्य की लोकसंस्कृति, गहरी आस्था और पर्यावरण संरक्षण के अंतर्निहित मूल्यों का प्रतीक है। हर साल मानसून की शुरुआत में मनाया जाने वाला यह पर्व नई फसल और हरियाली के आगमन का सूचक है, जो जीवन में समृद्धि का संदेश लाता है। इसी भावना को आत्मसात करते हुए राज्य सरकार ने इस पारंपरिक पर्व को एक विशाल वृक्षारोपण अभियान का रूप दिया है।
“एक पेड़ माँ के नाम”: एक भावनात्मक आह्वान
इस वर्ष के अभियान को एक विशेष और भावनात्मक गहराई देते हुए “एक पेड़ माँ के नाम” की थीम को चुना गया है। यह थीम हर व्यक्ति को अपनी माँ के सम्मान में एक पौधा लगाने के लिए प्रेरित करती है। जिस प्रकार एक माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण करती है, ठीक उसी तरह एक पेड़ भी धरती और समस्त जीव-जगत का पोषण करता है। इस अभियान का उद्देश्य हर नागरिक को यह महसूस कराना है कि एक पौधा लगाकर वे न केवल धरती माँ का ऋण चुका रहे हैं, बल्कि अपनी जननी के प्रति सम्मान भी प्रकट कर रहे हैं। यह पहल वृक्षारोपण को एक सरकारी कार्यक्रम से निकालकर एक व्यक्तिगत और पारिवारिक संस्कार बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
एक जनआंदोलन का संकल्प
5 लाख पौधे रोपित करने का यह लक्ष्य केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक सामूहिक संकल्प है। यह भावी पीढ़ियों के लिए एक हरित धरोहर की नींव रखने का एक दूरदर्शी प्रयास है। राज्य सरकार ने इस महाअभियान को सफल बनाने के लिए सभी नागरिकों, सामाजिक संस्थाओं, सरकारी विभागों, स्कूलों और कॉलेजों से इस पुनीत कार्य में शामिल होने का आह्वान किया है। इस अभियान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर व्यक्ति इस पहल से जुड़े और इसे एक सच्चे जनआंदोलन में बदल दे।
यह महाअभियान केवल वृक्षारोपण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की संस्कृति को उसकी प्रकृति और उसके भविष्य के साथ मजबूती से जोड़ने का एक प्रयास है। यह अभियान इस बात का प्रमाण है कि कैसे एक पारंपरिक त्योहार आधुनिक समय की सबसे बड़ी चुनौती, यानी जलवायु परिवर्तन, का समाधान प्रस्तुत कर सकता है। आइए, हम सब मिलकर इस पुनीत पर्व पर एक पौधा रोपकर न केवल अपनी परंपरा का निर्वहन करें, बल्कि एक समृद्ध और हरित उत्तराखंड की ओर एक दृढ़ कदम बढ़ाएं।
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