Delhi: सरकार की नीतियों के खिलाफ 25 करोड़ कामगारों का ‘भारत बंद’

नई दिल्ली। देश के 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने बुधवार को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है, जिसे ‘भारत बंद’ का नाम दिया गया है। इस हड़ताल में लगभग 25 करोड़ कामगारों के शामिल होने की उम्मीद है, जो इसे हाल के वर्षों की सबसे बड़ी श्रमिक कार्रवाइयों में से एक बनाता है। बैंकिंग, बीमा, डाक सेवाओं से लेकर कोयला खदानों और सरकारी परिवहन तक के कर्मचारी इस राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेंगे।

ट्रेड यूनियनों का मुख्य आरोप है कि केंद्र सरकार मजदूर-विरोधी नीतियां अपना रही है और उनके हितों को नजरअंदाज कर कॉर्पोरेट जगत को बढ़ावा दे रही है। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) के अनुसार, इस हड़ताल की तैयारी महीनों से चल रही थी क्योंकि सरकार ने मजदूरों की मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया। यूनियनों ने पिछले वर्ष श्रम मंत्री को 17 सूत्रीय मांगों का एक चार्टर सौंपा था, लेकिन उनका कहना है कि इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। वे इस बात से भी नाराज हैं कि पिछले एक दशक से वार्षिक भारतीय श्रम सम्मेलन का आयोजन नहीं किया गया है, जिसे वे मजदूरों के प्रति सरकार की उदासीनता का प्रतीक मानते हैं।

हड़ताल का एक प्रमुख कारण सरकार द्वारा लाई गई चार नई श्रम संहिताएं हैं। यूनियनों का आरोप है कि ये संहिताएं मजदूरों के अधिकारों को कमजोर करने की एक साजिश हैं। उनका कहना है कि ये कानून सामूहिक सौदेबाजी को मुश्किल बनाते हैं, हड़ताल करने के अधिकार को छीनते हैं, काम के घंटे बढ़ाते हैं और नियोक्ताओं को श्रम कानूनों के उल्लंघन से बचाते हैं। संयुक्त मंच का मानना है कि इन संहिताओं का उद्देश्य ट्रेड यूनियन आंदोलन को कुचलना और मजदूरों की आवाज को दबाना है।

इस ‘भारत बंद’ के कारण आम जनजीवन प्रभावित होने की आशंका है। बैंकिंग, बीमा, डाक सेवाएं, कोयला खनन और सरकारी परिवहन जैसी आवश्यक सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं। हालांकि, यूनियनों ने स्पष्ट किया है कि शेयर बाजार और सर्राफा बाजार सामान्य रूप से खुले रहेंगे।

इस हड़ताल को संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि मजदूर यूनियनों के संयुक्त मंच का भी पूरा समर्थन मिला है, जिन्होंने ग्रामीण भारत में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है। कुल मिलाकर, यह हड़ताल सरकार की निजीकरण, आउटसोर्सिंग और ठेकाकरण की नीतियों के खिलाफ एक व्यापक विरोध है, जिसके बारे में यूनियनों का मानना है कि यह मजदूरों के भविष्य को अनिश्चित बना रहा है और देश के कल्याणकारी ढांचे को कमजोर कर रहा है।

 

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