नाहन। हिमाचल प्रदेश की महत्वाकांक्षी परियोजना, प्रदेश का पहला निर्माणाधीन ‘ग्रीन कॉरिडोर’ (पांवटा साहिब-शिलाई-गुम्मा नेशनल हाईवे 707) एक बड़ी आपदा का केंद्र बन गया है। देर रात करीब 12 बजे शिलाई के समीप उत्तरी में हुए भारी भूस्खलन के कारण यह महत्वपूर्ण हाईवे पूरी तरह से बंद हो गया है, जिसके चलते हाईवे के दोनों ओर वाहनों का कई किलोमीटर लंबा जाम लग गया है। इस जाम में स्कूली बच्चों, नौकरीपेशा लोगों से लेकर अस्पताल जा रहे मरीजों तक, सैकड़ों लोग घंटों से फंसे हुए हैं, जिससे स्थिति अत्यंत गंभीर हो गई है।
कुदरती नहीं, मानव निर्मित आपदा का आरोप
हालांकि, स्थानीय लोगों ने इस भूस्खलन को कुदरती आपदा मानने से इनकार कर दिया है। उनका सीधा आरोप है कि यह एक ‘मानव निर्मित आपदा’ है, जो हाईवे का निर्माण कर रही कंपनी की लापरवाही और अवैध गतिविधियों का नतीजा है। लोगों का कहना है कि भूस्खलन वाले स्थान के ठीक सामने, गंगटोली में, पिछले कई दिनों से अवैध और अवैज्ञानिक तरीके से भारी ब्लास्टिंग की जा रही थी। इस अंडर कटिंग और भारी विस्फोटों से उत्पन्न कंपन के कारण पहाड़ी का एक बड़ा हिस्सा कमजोर होकर ढह गया। लोगों के अनुसार, यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की घटना हुई है; कंपन के कारण पहले भी यहां चट्टानें खिसकती रही हैं।
बहाली के प्रयास जारी, शाम तक खुलने की उम्मीद

घटना की सूचना मिलते ही निर्माण कंपनी ने हाईवे को बहाल करने के लिए मशीनरी मौके पर भेज दी है। हालांकि, भूस्खलन इतना भीषण है कि सड़क पर बड़ी-बड़ी चट्टानें आ गई हैं, जिन्हें सीधे हटाना संभव नहीं है। इन पत्थरों को पहले हाइड्रोलिक ब्रेकर की मदद से तोड़ा जाएगा, जिसके बाद ही मलबा हटाया जा सकेगा। इस प्रक्रिया में काफी समय लगने की आशंका है और अधिकारियों का अनुमान है कि हाईवे को यातायात के लिए शाम तक ही खोला जा सकेगा। इस जाम में फंसे लोगों की परेशानियां बढ़ती जा रही हैं, खासकर उन मरीजों और किसानों के लिए जिनकी सब्जियों से लदी गाड़ियां मंडियों तक नहीं पहुंच पा रही हैं।
प्रशासन ने दिए त्वरित कार्रवाई के निर्देश
मामले की गंभीरता को देखते हुए स्थानीय प्रशासन भी हरकत में आ गया है। इस संदर्भ में संपर्क करने पर शिलाई के एसडीएम जसपाल ने बताया कि उत्तरी में हुए भूस्खलन से भारी मात्रा में मलबा हाईवे पर आया है। उन्होंने कहा, “हमने कंपनी के अधिकारियों को जल्द से जल्द हाईवे बहाल करने के कड़े निर्देश दिए हैं। साथ ही, कंपनी को यह भी निर्देश दिया गया है कि यदि आवश्यक हो तो वे अन्य कंपनियों से अतिरिक्त मशीनें मंगवाकर सड़क को जल्द से जल्द यातायात के लिए सुचारू करें।”
यह घटना न केवल यात्रियों के लिए एक बड़ी असुविधा है, बल्कि यह विकास परियोजनाओं में सुरक्षा और पर्यावरण मानकों के पालन पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है, खासकर जब स्थानीय लोग इसे सीधे तौर पर निर्माण कंपनी की लापरवाही से जोड़ रहे हैं।
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