चंडीगढ़। आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के अहमदाबाद में दिए एक बयान ने देश की राजधानी दिल्ली से लेकर चंडीगढ़ तक के राजनीतिक समीकरणों में हलचल मचा दी है। केजरीवाल ने स्पष्ट किया कि ‘इंडिया’ गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव के लिए था और अब उनकी पार्टी का किसी से कोई गठबंधन नहीं है, वे अकेले चुनाव लड़ेंगे। इस बयान के बाद चंडीगढ़ के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि यहां कांग्रेस और ‘आप’ के सफल गठबंधन का भविष्य क्या होगा।
केजरीवाल के इस बयान के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जब पार्टी ने बिहार जैसे राज्य में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है, तो क्या चंडीगढ़ में यह गठबंधन बना रहेगा या टूट जाएगा? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी गठबंधन के दम पर ‘आप’ ने चंडीगढ़ में पहली बार अपना मेयर बनाने में सफलता हासिल की थी और इसके बाद दोनों दलों ने मिलकर लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को मात दी थी, जहाँ कांग्रेस के प्रत्याशी मनीष तिवारी ने जीत दर्ज की।
क्या बिखर जाएगा मेयर की कुर्सी का समीकरण?
अगर यह गठबंधन टूटता है, तो इसका सीधा असर अगले वर्ष होने वाले मेयर चुनाव पर पड़ेगा, जहाँ समीकरण पूरी तरह बदल जाएंगे और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए अपना मेयर बनाने की राह एक बार फिर आसान हो सकती है। यह गठबंधन चंडीगढ़ में भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए ही बना था और अब तक यह इसमें सफल भी रहा है।
हालांकि, यह भी एक तथ्य है कि इससे पहले के मेयर चुनाव में संख्या बल में अधिक होने के बावजूद, आंतरिक खींचतान और क्रॉस-वोटिंग के चलते गठबंधन अपना मेयर बनाने में असफल रहा था और भाजपा की प्रत्याशी हरप्रीत कौर बबला मेयर बनी थीं। विपक्षी दल भाजपा शुरू से ही इस गठबंधन को ‘विचारों का मेल’ नहीं, बल्कि एक ‘राजनीतिक डील’ करार देता रहा है।
क्या स्थानीय हितों के लिए बना रहेगा गठबंधन?
इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है, जिस पर राजनीतिक विश्लेषक गौर कर रहे हैं। यह भी संभव है कि बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में राष्ट्रीय स्तर पर भले ही दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ें, लेकिन चंडीगढ़ जैसे केंद्र शासित प्रदेश में स्थानीय हितों, खासकर मेयर की कुर्सी के लिए, यह गठबंधन बना रह सकता है।
इसका एक बड़ा उदाहरण पहले भी देखने को मिल चुका है। पंजाब में कांग्रेस के नेता लगातार ‘आप’ सरकार पर हमलावर रहे और गठबंधन तोड़ने की बात करते रहे, लेकिन इसका असर चंडीगढ़ की स्थानीय इकाई पर कभी नहीं पड़ा और यहां दोनों दलों के नेता एकजुट होकर काम करते रहे।
कुल मिलाकर, केजरीवाल का बयान चंडीगढ़ में ‘आप’ और कांग्रेस, दोनों के लिए एक बड़ी दुविधा लेकर आया है। अब देखना यह होगा कि राष्ट्रीय राजनीति की दिशा चंडीगढ़ में स्थानीय दोस्ती को कायम रख पाती है या फिर यहां भी रास्ते अलग हो जाएंगे। इस गठबंधन का असली लिटमस टेस्ट अगले मेयर चुनाव में ही होगा, जिस पर अब सभी की निगाहें टिकी हैं।
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