नई दिल्ली। देश को अन्न उपलब्ध कराने वाला किसान आज खुद अपनी जिंदगी बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। यह कड़वी हकीकत एक बार फिर महाराष्ट्र से आए उन आंकड़ों से सामने आई है, जो किसी भी संवेदनशील समाज को झकझोरने के लिए काफी हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2025 की पहली तिमाही, यानी जनवरी से मार्च के बीच, केवल तीन महीनों में 767 किसानों ने आत्महत्या कर अपनी जान दे दी। यह आंकड़ा न केवल सरकारी दावों पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि उस गहरी निराशा को भी दर्शाता है जिससे देश का कृषि समुदाय गुजर रहा है। इन आत्महत्याओं का केंद्र एक बार फिर विदर्भ का सूखाग्रस्त और संकटग्रस्त क्षेत्र रहा है, जहां सबसे अधिक किसानों ने मौत को गले लगाया।
किसानों की मौत के इन भयावह आंकड़ों ने राष्ट्रीय राजनीति में भी हलचल मचा दी है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सरकार की नीतियों और प्राथमिकताओं पर गंभीर सवाल उठाए।
राहुल गांधी का सरकार पर तीखा प्रहार
राहुल गांधी ने इन आंकड़ों को केवल संख्या मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, “ये सिर्फ आंकड़ा नहीं, 767 उजड़े घर हैं। सोचिए, सिर्फ 3 महीने में महाराष्ट्र में 767 किसानों ने आत्महत्या कर ली। 767 घर उजड़ गए और ये परिवार अब कभी नहीं संभल पाएंगे।” उन्होंने इन मौतों को एक व्यक्तिगत त्रासदी के रूप में प्रस्तुत करते हुए सरकार की उदासीनता पर निशाना साधा।
उन्होंने आगे कहा कि सरकार इस पूरे संकट को चुपचाप और बेखौफ होकर देख रही है। राहुल गांधी ने किसान आत्महत्याओं के पीछे के मूल कारणों को गिनाते हुए कहा कि लगातार बढ़ती महंगाई, महंगी बिजली, आसमान छूते डीजल के दाम, और खाद की बढ़ती कीमतें किसानों की कमर तोड़ रही हैं। इन सबके ऊपर, उनकी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कोई कानूनी गारंटी न होना उन्हें बाजार के रहमोकरम पर छोड़ देता है, जहां उन्हें अक्सर अपनी लागत भी नहीं मिल पाती।
राहुल गांधी ने किसानों के कर्ज के दुष्चक्र का जिक्र करते हुए लिखा, “किसान हर दिन कर्ज की गहराई में डूब रहे हैं। बीज महंगे हैं, खाद महंगी है, डीजल महंगा है लेकिन MSP की कोई गारंटी नहीं है। जब वे कर्ज माफी की मांग करते हैं तो उन्हें नजरअंदाज किया जाता है।” उन्होंने सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाते हुए बड़े उद्योगपतियों के कर्ज माफ करने की नीति की आलोचना की। उन्होंने अनिल अंबानी के कथित 48,000 करोड़ रुपये के एसबीआई फ्रॉड का उदाहरण देते हुए कहा, “लेकिन जिनके पास करोड़ों हैं, उनके लोन मोदी सरकार आराम से माफ कर देती है।”

प्रधानमंत्री मोदी के वादों पर तंज कसते हुए राहुल गांधी ने कहा, “पीएम मोदी ने कहा था किसानों की आमदनी दोगुनी करेंगे, आज हाल ये है कि अन्नदाता की जिंदगी आधी हो रही है।” उन्होंने निष्कर्ष में कहा कि यह व्यवस्था चुपचाप लेकिन लगातार किसानों की जान ले रही है और प्रधानमंत्री अपने प्रचार-प्रसार का तमाशा देखने में व्यस्त हैं।
क्यों है विदर्भ संकट का केंद्र?
महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या कोई नई बात नहीं है, और इसका केंद्र हमेशा से विदर्भ क्षेत्र रहा है। यह क्षेत्र मुख्य रूप से नकदी फसलों, विशेषकर कपास और सोयाबीन पर निर्भर है, जो पूरी तरह से मानसून की अनिश्चितताओं पर आधारित हैं। अनियमित वर्षा, सूखा और फिर बेमौसम बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाएं यहां की कृषि को लगभग जुए में बदल देती हैं। किसान बुवाई के लिए बीज, खाद और कीटनाशकों पर भारी निवेश करते हैं, जिसके लिए वे अक्सर साहूकारों या बैंकों से ऊंचे ब्याज पर कर्ज लेते हैं। जब फसल खराब हो जाती है या बाजार में सही दाम नहीं मिलता, तो वे कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं। यह कर्ज का बोझ हर साल बढ़ता जाता है और अंततः उन्हें निराशा और आत्महत्या के अंधेरे कुएं में धकेल देता है।
समस्या सिर्फ आर्थिक नहीं, सामाजिक भी
किसानों की आत्महत्या केवल एक आर्थिक संकट का परिणाम नहीं है, बल्कि इसके गहरे सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू भी हैं। कर्ज चुकाने में विफलता को समाज में प्रतिष्ठा की हानि के रूप में देखा जाता है। लगातार फसल खराब होने और कर्ज के बोझ तले दबे किसान को अपने परिवार का भविष्य अंधकारमय नजर आने लगता है। सरकारी योजनाओं का लाभ अक्सर उन तक पहुंच नहीं पाता और व्यवस्था के प्रति उनका विश्वास टूट जाता है। ऐसी स्थिति में, वे आत्महत्या को ही एकमात्र रास्ता मान लेते हैं।
ये आंकड़े एक चेतावनी हैं कि कृषि संकट को केवल राजनीतिक बयानबाजी या अस्थायी राहत पैकेजों से हल नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक स्थायी और समग्र नीति की आवश्यकता है, जिसमें फसल बीमा को प्रभावी बनाने, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करने, एमएसपी की कानूनी गारंटी देने और किसानों को कर्ज के दुष्चक्र से निकालने के लिए एक ठोस तंत्र बनाने जैसे कदम शामिल हों। जब तक अन्नदाता को आर्थिक सुरक्षा और सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक ऐसे दुखद आंकड़े देश को शर्मिंदा करते रहेंगे।
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