शिमला: केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा ग्रांट रोकने के कारण हिमाचल प्रदेश में मनरेगा का कामकाज ठप हो गया है। पिछले चार महीनों से मनरेगा मजदूरों को दिहाड़ी नहीं मिली है और तीन महीनों से मनरेगा कर्मियों का वेतन रुका हुआ है। नवंबर 2024 से अब तक लगभग 461.56 करोड़ रुपये की राशि लंबित है। इसमें लेबर मद के लगभग 250 करोड़, निर्माण सामग्री मद के 200 करोड़ और एडमिन मद के 11 करोड़ रुपये शामिल हैं।
26 दिसंबर के बाद से मनरेगा मजदूरों को दिहाड़ी का भुगतान नहीं हुआ है। बजट के अभाव में निर्माण सामग्री की खरीद भी नहीं हो पा रही है। एडमिन मद में पैसा न होने के कारण मनरेगा कर्मियों को पिछले तीन महीनों से वेतन नहीं मिला है।
हिमाचल प्रदेश मनरेगा के तहत बेहतरीन प्रदर्शन कर रहा है। पिछले वित्त वर्ष 2024-25 में 1534 करोड़ रुपये के काम हुए और 395 लाख कार्य दिवस सृजित किए गए, जो लक्ष्य से 136% अधिक है। फिर भी, 31 मार्च 2025 तक की मजदूरी का भुगतान अब तक नहीं किया गया है।
राज्य में मनरेगा के तहत 7.16 लाख परिवार और 10.26 लाख लोग पंजीकृत हैं। पिछले पांच वर्षों में औसतन 350 लाख कार्य दिवस प्रति वर्ष सृजित किए गए, लेकिन वित्त वर्ष 2025-26 के लिए केंद्र सरकार ने इसे घटाकर 250 लाख कर दिया है, जबकि राज्य ने 417 लाख कार्य दिवस का प्रस्ताव भेजा था। हिमाचल प्रदेश सरकार कार्य दिवसों में इस कटौती का विरोध कर रही है।
ग्राम रोजगार सेवक संघ के प्रदेश अध्यक्ष शिवराज ठाकुर और शिमला जिला अध्यक्ष राजेंद्र ठाकुर ने बताया कि ग्रांट न मिलने से 1031 ग्राम रोजगार सहायक, 400 तकनीकी सहायक, 100 कंप्यूटर ऑपरेटर और 24 कनिष्ठ लेखपाल सहित मनरेगा कर्मियों को वेतन नहीं मिल रहा है, जिससे उन्हें परिवार का खर्च चलाने में मुश्किल हो रही है।
ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार ने हिमाचल की लगभग 461 करोड़ रुपये की मनरेगा ग्रांट रोक रखी है, जिससे मजदूरों की दिहाड़ी, निर्माण सामग्री की खरीद और कर्मचारियों के वेतन का भुगतान प्रभावित हो रहा है। राज्य सरकार बार-बार केंद्र को पत्र लिख रही है, लेकिन ग्रांट बहाल नहीं हो रही है।
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