सुप्रीम कोर्ट ने 13 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर वैधानिक प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। न्यायालय ने इसे नीतिगत मामला बताते हुए कहा कि यह संसद का काम है कि वह इस पर कानून बनाए। हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को संबंधित प्राधिकारी के समक्ष अपना पक्ष रखने की अनुमति दे दी है।
न्यायालय की टिप्पणी:
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, “यह नीतिगत मामला है। आप संसद से कानून बनाने के लिए कहें। हम इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते।” पीठ ने स्पष्ट किया कि वह मौजूदा याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है क्योंकि मांगी गई राहत नीति के दायरे में आती है।
याचिका का निपटारा करते हुए, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को संबंधित प्राधिकरण के समक्ष अपना अभ्यावेदन प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता दी। साथ ही, यह भी निर्देश दिया कि यदि ऐसा कोई अभ्यावेदन किया जाता है तो उस पर आठ सप्ताह के भीतर कानून के अनुसार विचार किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता की मांग:
जेप फाउंडेशन द्वारा दायर की गई इस याचिका में केंद्र सरकार और अन्य संबंधित पक्षों से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक बच्चों की पहुँच को विनियमित करने की मांग की गई थी। इसके लिए बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण जैसी मजबूत आयु सत्यापन प्रणाली शुरू करने का निर्देश देने की भी मांग की गई थी। वकील मोहिनी प्रिया के माध्यम से दायर याचिका में बच्चों के लिए बनाए गए नियमों का पालन न करने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए सख्त दंड लागू करने की भी मांग की गई थी।
सोशल मीडिया और बच्चों की सुरक्षा: एक जटिल मुद्दा:
यह मामला सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग और बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंताओं को उजागर करता है। एक ओर जहाँ सोशल मीडिया बच्चों के लिए ज्ञान और संचार का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन सकता है, वहीं दूसरी ओर यह उन्हें साइबरबुलिंग, अश्लील सामग्री, और ऑनलाइन शोषण जैसे खतरों के प्रति भी संवेदनशील बनाता है।
बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आयु सत्यापन, अभिभावकीय नियंत्रण, और डिजिटल साक्षरता जैसे उपायों की आवश्यकता है। हालांकि, इन उपायों को लागू करना और उनकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करना एक जटिल चुनौती है। इसके लिए सरकार, सोशल मीडिया कंपनियों, अभिभावकों, और बच्चों के बीच समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।
आगे की राह:
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, यह देखना होगा कि सरकार और संबंधित प्राधिकरण इस मुद्दे पर क्या कदम उठाते हैं। बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक नीति की आवश्यकता है, जो तकनीकी समाधानों के साथ-साथ जागरूकता अभियानों और शैक्षिक कार्यक्रमों पर भी ध्यान केंद्रित करे। इसके अलावा, सोशल मीडिया कंपनियों को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रभावी उपाय लागू करने होंगे। केवल सामूहिक प्रयासों से ही हम बच्चों के लिए एक सुरक्षित और सकारात्मक ऑनलाइन वातावरण बना सकते हैं.
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