
नई दिल्ली: आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में बच्चों पर भी तनाव का बोझ बढ़ता जा रहा है। स्कूल, दोस्त, सोशल मीडिया और प्रतियोगिता का दबाव बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है। ऐसे में ‘पांडा पेरेंटिंग’ एक ऐसा तरीका है जो बच्चों को तनाव मुक्त रखने में मदद कर सकता है।
पांडा पेरेंटिंग बच्चों की परवरिश का एक ऐसा स्टाइल है जिसमें उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से मज़बूत बनाने पर ज़ोर दिया जाता है। इसमें बच्चों को प्रकृति के करीब लाया जाता है और शारीरिक गतिविधियों में शामिल किया जाता है, जिससे वे बिना किसी दबाव के अपनी बात रख सकें और बेहतर फैसले ले सकें।
क्या है पांडा पेरेंटिंग?
सरल शब्दों में कहें तो पांडा पेरेंटिंग में माता-पिता ज़रूरत से ज़्यादा बच्चों की रक्षा नहीं करते, बल्कि उन्हें अपनी समस्याओं का समाधान खुद ढूँढ़ने का मौका देते हैं। इससे बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है और वे जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनते हैं।

डर की जगह प्यार और विश्वास
इस पेरेंटिंग स्टाइल में माता-पिता बच्चों को डराने-धमकाने की बजाय उनकी बातों को सुनते हैं और उनकी मदद करते हैं। इससे बच्चों और माता-पिता के बीच एक मज़बूत रिश्ता बनता है और बच्चे झूठ बोलने से बचते हैं। इस आपसी समझ और विश्वास से बच्चों का मानसिक विकास होता है और परिवार में खुशी का माहौल बनता है।
आत्मविश्वास का विकास
पांडा पेरेंटिंग में माता-पिता बच्चों पर अपनी इच्छाएँ थोपने की बजाय उन्हें अपनी पसंद से फैसले लेने की आज़ादी देते हैं। वे बच्चों की बातों को ध्यान से सुनते हैं और उनका समर्थन करते हैं, जिससे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे खुश रहते हैं।
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