
देहरादून: उत्तराखंड में नगर निकाय चुनावों की सरगर्मी के बीच कांग्रेस जोरदार तैयारी में जुटी है. पार्टी निकाय चुनावों को 2027 के विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल मान रही है और शहरी क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. इसी रणनीति के तहत कांग्रेस महापौर पदों के लिए पूर्व विधायकों और विधानसभा चुनाव लड़ चुके दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारने पर विचार कर रही है.
प्रदेश में निकाय चुनावों के लिए ओबीसी आरक्षण की अनंतिम अधिसूचना जारी हो चुकी है. आपत्तियों के निपटारे के बाद अंतिम अधिसूचना जारी होने पर आरक्षण की स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो जाएगी. राज्य के कुल 105 में से 102 निकायों में चुनाव होने हैं, जिनमें 11 नगर निगम, 43 नगर पालिका परिषद, और 46 नगर पंचायतें शामिल हैं.
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती अधिकांश शहरी निकायों पर काबिज सत्तारूढ़ भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने की है. पिछले चुनाव में कांग्रेस के पास सिर्फ दो नगर निगम थे. इस बार बेहतर प्रदर्शन के लिए पार्टी जिताऊ और मजबूत उम्मीदवारों पर दांव लगाना चाहती है.
पार्टी ने जिलेवार पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की है जो संभावित उम्मीदवारों की स्थिति का आकलन कर रहे हैं. पर्यवेक्षकों की सूची में अब तक दो बार बदलाव किया जा चुका है. ओबीसी आरक्षण की अंतिम अधिसूचना जारी होने के बाद पर्यवेक्षक अपनी रिपोर्ट प्रदेश संगठन को सौंपेंगे, जो 25 दिसंबर तक मिलने की उम्मीद है.
इसके बाद प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं और प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति की बैठक में रिपोर्ट पर विचार-विमर्श कर उम्मीदवारों के चयन पर अंतिम फैसला लिया जाएगा. पार्टी हाईकमान भी निकाय चुनावों में अच्छे प्रदर्शन की उमीद कर रहा है. कांग्रेस के सह-प्रभारी सुरेंद्र शर्मा 23 दिसंबर के बाद उत्तराखंड में डेरा डाल सकते हैं.
प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष (संगठन एवं प्रशासन) मथुरादत्त जोशी ने बताया कि ओबीसी आरक्षण की अंतिम अधिसूचना का इंतज़ार है. अंतिम आरक्षण तय होने के बाद जिला पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के आधार पर प्रदेश संगठन और वरिष्ठ नेता उम्मीदवारों के चयन पर फैसला लेंगे.

कांग्रेस की रणनीति:
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पूर्व विधायकों और अनुभवी नेताओं पर दांव: शहरी क्षेत्रों में पार्टी की स्थिति मजबूत करने के लिए कांग्रेस महापौर पदों के लिए पूर्व विधायकों और विधानसभा चुनाव लड़ चुके नेताओं को मैदान में उतार सकती है. इन नेताओं का अपने क्षेत्र में अच्छा प्रभाव और जनता से सीधा संपर्क होता है, जो चुनाव में फायदेमंद साबित हो सकता है.
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जिला पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट पर ज़ोर: उम्मीदवारों के चयन में पारदर्शिता और क्षेत्रीय जमीनी हकीकत को प्राथमिकता देने के लिए कांग्रेस जिला पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट पर विशेष ज़ोर दे रही है. यह सुनिश्चित करेगा कि केवल जिताऊ और स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों को ही टिकट दिया जाए.
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हाईकमान की नज़र: पार्टी हाईकमान भी निकाय चुनावों में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रहा है. सह-प्रभारी सुरेंद्र शर्मा का उत्तराखंड में डेरा डालना इस बात का संकेत है कि पार्टी इन चुनावों को गंभीरता से ले रही है और पूरी ताकत से चुनाव लड़ेगी.
चुनौतियाँ:
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भाजपा का दबदबा: उत्तराखंड के अधिकांश शहरी निकायों पर भाजपा का कब्ज़ा है. कांग्रेस के लिए भाजपा के इस गढ़ में सेंध लगाना एक बड़ी चुनौती होगी.
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ओबीसी आरक्षण का मुद्दा: ओबीसी आरक्षण को लेकर अभी भी स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं है. अंतिम अधिसूचना जारी होने के बाद ही आरक्षण का चित्र साफ होगा, जिसका असर उम्मीदवारों के चयन पर भी पड़ सकता है.
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