देहरादून। मौसम और जलवायु अध्ययन में एरोसोल (कोहरा, धुंध, धूल आदि) की महत्वपूर्ण भूमिका को समझने और इस पर शोध को बढ़ावा देने के लिए देहरादून में एक चार दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (ARIES), दून विश्वविद्यालय और भारतीय एरोसोल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संघ (IASTA) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस सम्मेलन का उद्घाटन मंगलवार को विकसनगर विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने किया।
सम्मेलन में देश-विदेश के 250 से अधिक वैज्ञानिक और शोधकर्ता हिस्सा ले रहे हैं। उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए विधायक चौहान ने कहा कि एरोसोल जैसे सूक्ष्म मुद्दों पर सम्मेलन आयोजित करना समय की मांग है, खासकर हिमालयी क्षेत्र में जहां इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि हिमालय की तलहटी में एरोसोल का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जिसका असर ग्लेशियरों, जलवायु चक्र, पारिस्थितिकी और सामाजिक क्षेत्र पर पड़ रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि सम्मेलन के निष्कर्षों के आधार पर नीति निर्माताओं को प्रदूषण कम करने के लिए ठोस कदम उठाने में मदद मिलेगी।
ARIES के निदेशक डॉ. मनीष नाजा ने बताया कि एरोसोल हवा में मौजूद अतिसूक्ष्म ठोस कणों या तरल बूंदों का मिश्रण होता है। कोहरा, धूल, इत्र, धुआं, दमा के इन्हेलर आदि इसके कुछ उदाहरण हैं। वायुमंडलीय एरोसोल मौसम और जलवायु अध्ययन के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं।
मियामी विश्वविद्यालय, अमेरिका के प्रोफेसर प्रतीम बिस्वास ने एरोसोल विज्ञान और प्रौद्योगिकी के ऐतिहासिक पहलुओं और भविष्य में इसके अवसरों पर प्रकाश डाला। दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने कहा कि सर्दियों में, खासकर उत्तर भारत के शहरों में, गंभीर वायु प्रदूषण की समस्या होती है, जिसमें एरोसोल एक बड़ा कारक है। ऐसे में एरोसोल पर शोध, इसके अनुप्रयोग और वैज्ञानिक विचारों का आदान-प्रदान बहुत महत्वपूर्ण है।
IASTA, वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का एक पेशेवर संगठन है जो सम्मेलनों, तकनीकी बैठकों, व्याख्यानों और प्रकाशनों के माध्यम से एरोसोल अनुसंधान को बढ़ावा देता है। यह संगठन भारत और विदेशों में विभिन्न संस्थानों और समान संघों के साथ सक्रिय संपर्क बनाए रखता है।
यह सम्मेलन एरोसोल से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने, नई तकनीकों के बारे में जानने और इस क्षेत्र में आगे की राह तय करने का एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करेगा। इससे वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद मिलने की उम्मीद है।
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