देहरादून, 3 अक्टूबर, 2024: उत्तराखंड में स्थानीय निकायों के चुनावों की बाधा अब दूर हो गई है। राजभवन ने ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण समेत अन्य प्रावधानों को लेकर नगर निगम और नगर पालिका अधिनियम में संशोधन अध्यादेश को मंज़ूरी दे दी है। इस मंज़ूरी के साथ ही राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों का मार्ग प्रशस्त हो गया है। अब आरक्षण निर्धारित होने के बाद इस महीने के अंत तक चुनाव की अधिसूचना जारी होने की संभावना है।
ओबीसी आरक्षण और अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान
यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप है, जिसके अनुसार स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण का नए सिरे से निर्धारण किया जाना आवश्यक है। इसके लिए एक समर्पित आयोग का गठन किया गया था, जिसने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। अध्यादेश में आयोग की सिफ़ारिशों के आधार पर ओबीसी आरक्षण तय करने का प्रावधान है। यह भी स्पष्ट किया गया है कि अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी के लिए आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। यदि अनुसूचित जाति और जनजाति का आरक्षण 50 प्रतिशत या उससे अधिक है, तो ओबीसी को आरक्षण नहीं मिलेगा।
अध्यादेश में एक और महत्वपूर्ण प्रावधान यह भी शामिल किया गया है कि वित्तीय अनियमितता या किसी शिकायत के मामले में दोषी पाए जाने पर नगर पालिका अध्यक्ष और उपाध्यक्ष निकाय के सदस्य नहीं रह पाएंगे और पांच साल तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।
जुड़वा बच्चों को लेकर राहत
सरकार ने उन लोगों को भी राहत दी है जिनकी पहली संतान के जीवित रहते हुए दूसरी संतान जुड़वाँ है। अध्यादेश में इस स्थिति को एक इकाई मानते हुए ऐसे लोगों को बच्चों की संख्या तीन होने पर भी चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई है।
अध्यादेश का इतिहास
इससे पहले, नगर निगम और नगर पालिका अधिनियम में संशोधन के लिए एक अध्यादेश लाया गया था, लेकिन विधानसभा के ग्रीष्मकालीन सत्र में इसे प्रवर समिति को सौंप दिया गया था। समिति ने वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर चुनाव कराने की सिफ़ारिश की थी। इसके बाद, सरकार ने संशोधित अध्यादेश को फिर से राजभवन भेजा, और विधि विभाग से राय लेने के बाद, इसे आखिरकार मंज़ूरी मिल गई है। इस अध्यादेश से उत्तराखंड में लंबे समय से रुके हुए स्थानीय निकाय चुनावों को अब जल्द ही आयोजित किया जा सकेगा।