
नई दिल्ली, 11 दिसंबर, 2024: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की मुफ्त राशन वितरण योजना पर गंभीर आपत्ति जताई है। 9 दिसंबर को हुई सुनवाई में कोर्ट ने सवाल किया कि यह मुफ्त राशन वितरण योजना कब तक चलेगी और सरकार रोजगार के अवसर क्यों नहीं पैदा कर रही है?
केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त या रियायती राशन दिया जा रहा है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने कहा कि इसका मतलब है कि केवल करदाता ही इस योजना से बाहर हैं।
यह सुनवाई ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत प्रवासी श्रमिकों और अकुशल मजदूरों को मुफ्त राशन कार्ड दिए जाने से संबंधित एक मामले में हो रही थी। याचिकाकर्ता की मांग थी कि ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत सभी प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त राशन प्रदान करने के निर्देश दिए जाएँ।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में पहले जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ सुनवाई कर रही थी। 4 अक्टूबर को पीठ ने आदेश दिया था कि सभी पात्र व्यक्तियों को 19 नवंबर तक राशन कार्ड जारी किए जाएँ। 26 नवंबर को केंद्र सरकार ने जवाब दाखिल करते हुए कहा कि उनका दायित्व केवल राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत ही है और वे कानून में निर्धारित सीमा से आगे नहीं जा सकते।

2011 की जनगणना के आंकड़े:
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि 2021 की जनगणना के आंकड़े होते तो प्रवासी श्रमिकों की संख्या ज्यादा दिखाई देती, क्योंकि केंद्र वर्तमान में 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर है।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मुफ्त राशन योजना कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू की गई थी और तब कोर्ट ने प्रवासी श्रमिकों को राहत देने के लिए आदेश दिए थे। लेकिन सरकार 2013 के अधिनियम से बंधी हुई है और वैधानिक योजना से आगे नहीं जा सकती।
अदालत ने कहा कि उसे केंद्र और राज्यों के बीच बँटवारे में नहीं पड़ना चाहिए, अन्यथा यह बहुत मुश्किल होगा। इस मामले की अगली सुनवाई 8 जनवरी को होगी। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से स्पष्ट है कि वह मुफ्त राशन योजना के दीर्घकालिक प्रभावों और रोजगार सृजन की आवश्यकता पर गंभीरता से विचार कर रही है।
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