देहरादून। भू कानून को लेकर महारैली के बाद पूर्व मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत उत्तराखंड के लिए नए भू-कानून बनाने के समर्थन में उतरे हैं। उन्होंने कहा कि दुख की बात यह है कि जहां भूमि बेचने के बारे में सोचा भी नहीं जाना चाहिए था, वहां की जमीन बिक रही हैं। इंटरनेट मीडिया पर अपनी पोस्ट में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गत 24 दिसंबर को भू-कानून में संशोधन की मांग को लेकर रैली का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि रैली में उमड़े हुजूम का आम दर्द यही था कि कहीं ऐसा न हो कि हमें हमारी ही मिट्टी से अलग कर दिया जाए। हमारी थाती ही हमारे लिए पराई न हो जाए।
हरीश रावत ने कहा कि केंद्र सरकार ने जब प्रदेश का नाम उत्तराखंड से बदलकर उत्तरांचल किया तो ऐसे ही पहचान के संकट से बेचैनी उत्पन्न हो गई थी। आज उत्तराखंड की पहचान का यह दर्द प्रदेश के हर क्षेत्र का है।
उन्होंने कहा कि हर मुकाम पर एक उत्तराखंडी संस्कृति है जो हमारी साझी संस्कृति के रूप में गौरवान्वित करती है। जब जमीन ही नहीं रहेगी तो संस्कृति कहां से रहेगी। माटी में ही तो चीजें अंकुरित होती हैं। जब माटी नहीं रहेगी तो भूमिपुत्र कहां से रहेंगे। इस मिट्टी के सत्व की रक्षा के लिए उत्तराखंड को एकजुट रखना है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि एक आंकड़े के अनुसार पिछले पांच वर्षों में एक लाख से अधिक रजिस्ट्री विभिन्न जिलों में अस्तित्व में आई हैं। उन्होंने सवाल दागा कि ये कौन लोग हैं, इसकी सूची जिलाधिकारियों के पास भी नहीं है। वनांतरा रिसॉर्ट आम बात हो गई है जो मन को कचोटती है।
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