SC: नफरती भाषणों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, बोला- अलग तंत्र से कसा जाएगा शिकंजा – The Hill News

SC: नफरती भाषणों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, बोला- अलग तंत्र से कसा जाएगा शिकंजा

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि किसी भी प्रकार के नफरत भरे भाषणों के खिलाफ कार्रवाई जरूर की जानी चाहिए। कोर्ट नफरत भरे भाषण के मुद्दे पर लोगों और समूहों की ओर से दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट फरवरी में कई याचिकाओं पर सुनवाई करने पर सहमत हो गया है, जिनमें नफरत फैलाने वाले भाषणों पर अंकुश लगाने के लिए एक तंत्र स्थापित करने की मांग की गई है।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ देश में घृणा भाषण से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के पुत्र उदयनिधि स्टालिन के विरुद्ध अवमानना कार्रवाई की मांग संबंधी याचिका भी शामिल है। पीठ ने कहा कि सनातन धर्म पर विवादित टिप्पणियों के लेकर तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के विरुद्ध अवमानना कार्रवाई की मांग संबंधी याचिका पर वह सुनवाई नहीं करेगा।

पीठ ने कहा कि अगर वह अवमानना याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर देगी तो ऐसी याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी। वह अलग-अलग मामलों पर सुनवाई नहीं करेगी। अगर उसने ऐसा किया तो वह मुख्य मामले से नहीं निपट पाएगी। साथ ही कहा कि देशभर के अलग-अलग मामलों पर सुनवाई करना असंभव होगा। पीठ ने टिप्पणी की, ‘हम अलग-अलग पहलुओं से नहीं निपट सकते।

हम प्रशासनिक तंत्र को स्थापित करेंगे और अगर कोई उल्लंघन होता है तो आपको संबंधित हाई कोर्ट जाना होगा।’ पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही नफरत फैलाने वाले भाषण को परिभाषित कर चुका है और अब सवाल उसके निर्देशों के कार्यान्वयन का है। पीठ ने कहा कि हम घृणा फैलाने वाले भाषणों की समस्या की देशभर में निगरानी नहीं कर सकते। भारत जैसे बड़े देश में समस्याएं तो होंगी ही लेकिन सवाल यह पूछा जाना चाहिए कि क्या हमारे पास इससे निपटने के लिए कोई प्रशासनिक तंत्र है।

सुप्रीम कोर्ट ने नफरत फैलाने वाले भाषण से निपटने के लिए नोडल अधिकारियों की नियुक्ति न करने पर तमिलनाडु, केरल, नगालैंड और गुजरात राज्यों को नोटिस भी जारी किया। पिछले साल 21 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड को नफरत भरे भाषण देने वालों पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया था और इसे धर्म-तटस्थ देश के लिए चौंकाने वाला बताया था।

यह मानते हुए कि भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की परिकल्पना करता है, कोर्ट ने तीनों राज्यों को शिकायत दर्ज होने की प्रतीक्षा किए बिना अपराधियों के खिलाफ तुरंत आपराधिक मामले दर्ज करने का निर्देश दिया था।

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