special : एक रात में बनकर तैयार हुआ था उत्तराखंड का ये मंदिर, हैरान करने वाली कहानी

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मंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक होता है …. भगवान का ये घर भक्तों के लिए वो दर जहां से कोई खाली नहीं लौटता ….कहते है कि मंदिर जितना भव्य होता है उसके निर्माण में उतना ही समय लगता है ….. एक स्वाभिक सा ख्याल है कि मंदिर की भव्यता इस बात पर भी निर्भर करती है कि उसे बनाने में समय कितना लगा होगा….. आसान शब्दो में कहा जाए तो जितना विशाल मंदिर निर्माण का समय उतना ही ज्यादा लेकिन अगर में आपसे कहु कि भारत में एक मंदिर ऐसा भी है जो दिखने में बेहद विशाल है लेकिन इस विशालकाय मंदिर को बनाने में केवल केवल और एक रात का समय लगा था ।

अल्मोड़ा का बिनेश्वर महादेव मंदिर कुछ ऐसी ही कहानी कहता है कहानी जो मंदिर की प्राचीनता को बतलाती है कहानी जो बताती है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग आदिकाल से ताल्लुख रखता है । यह प्रसिद्ध और पौराणिक मंदिर रानीखेत से करीब 20 किमी की दूरी पर स्थित है … देवदार और चीड़ के पेड़ों से घिरा ये मंदिर इंसानी बस्तियों से बिल्कुल अलग है … मंदिर का वातावरण दर्शाता है कि यहां निश्चित महादेव ने वास किया होगा । आध्यात्मिक शांति और ऊर्जा से परिपूर्ण ये मंदिर वाकई आलौकिक है । कुंज नदी के तट पर स्थित यह मंदिर समुद्र तल से करीब पांच हजार से ज्यादा फीट की ऊंचाई पर बना है

कहा जाता है कि ये मंदिर तकरीबन 600 साल पुराना है मंदिर के पुजारी बताते हैं कि 14वीं शताब्दी के इस मंदिर में भगवान शंकर स्वयंभू शिवलिंग में अवतरित हुए थे और जिसके बाद यहां मंदिर का निर्माण हुआ ।

मंदिर के निर्माण को लेकर भी कई बाते सामने आती है । ऐसा बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था कहते हैं कि अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां आए और उन्होंने एक रात में इस मंदिर का निर्माण कराया था मंदिर के पास रखी भीमघट नाम की शीला इस बात के संकेत देती है कि वाक्यई श्री कृष्ण के युग में यहां पांडवों का आगमन हुआ था और मान्यताओं के अनुसार पांडवों ने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था हालांकि एक कहानी ऐसी भी है कि 10 वीं सदी में राजा पृथ्वी ने अपने पिता बिंदु की याद में ये मंदिर बनवाया था लेकिन इस बात के कहीं प्रमाण नहीं मिलते हैं ।

मंदिर के निर्माण को लेकर ये कहानिया यहीं खत्म नहीं होती है । क्योंकि इस प्राचीन मंदिर के निर्माण के एक किस्सा मनिहारो से भी जुड़ा है । कहा जाता है कि सालों पहले बिनसर के पास स्थित सौनी गांव में मनिहार रहते थे मनिहारों की गाये बिनसर के इन जगलों में चरने के लिए आती है । आश्चर्य की बात यह है कि जब सारी गाय वापस लौटती तो इन सभी गायों में से एक गाय का दूध निकला रहता था। गाय का मालिक हर रोज ये बात सोचता था कि हो न हो कोई इंसान इस गाय का दूध निकाल लेता है ।

एक दिन मनिहार को गूस्सा आया और उसने गाय का पीछा किया, गाय के पीछा करते करते वह बिनसर के बीचो बीच जगलों में पहुच गया तो देखा उसकी गाया
जंगल में एक पत्थर के ऊपर खड़ी होकर दूध छोड़ रही थी और पत्थर वह दूध पी रहा था.गुस्साए मनिहार ने गाय को धक्का देकर कुल्हाड़ी से पत्थर पर प्रहार कर दिया जिससे उस पत्थर से खून की धार बहने लगी पत्थर इस धार को देख मनिहार घबरा गया ….. मनिहार क्षण भर में ये समझ गया कि ये कोई मामूली पत्थर नहीं है । आपको जानकर हैरानी होगी बिनसर महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर आज भी कुल्हाड़ी के वार के निशान दिखाई देते है और इस प्राचीन शिवलिंग के दर्शन करने दूर दूर से लोग पहुचते थे और कहते है जो भी यहां सच्चे मन से आता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है.

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