नई दिल्ली। सऊदी अरब ने इस महीने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए 50 साल पुरानी कफाला (स्पॉन्सरशिप) सिस्टम को आधिकारिक तौर पर खत्म कर दिया है। इस व्यवस्था को अक्सर आधुनिक दौर की गुलामी कहा जाता था, क्योंकि यह विदेशी कर्मचारियों के जीवन पर उनके नियोक्ता को पूरा नियंत्रण देती थी। यह निर्णय लाखों विदेशी मजदूरों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है, जिनमें लगभग 25 लाख भारतीय भी शामिल हैं।
कफाला सिस्टम की जड़ें और उसका प्रभाव
1950 के दशक में शुरू हुई यह व्यवस्था मूल रूप से विदेशी मजदूरों की निगरानी के लिए बनाई गई थी। इसके तहत हर विदेशी श्रमिक को एक ‘कफील’ (नियोक्ता) से जोड़ा जाता था, जो उसकी नौकरी, वेतन और यहां तक कि रहने की जगह पर भी पूर्ण नियंत्रण रखता था। सबसे चिंताजनक बात यह थी कि मजदूर अपने उत्पीड़क के खिलाफ शिकायत तक नहीं कर सकते थे, जब तक कि वही कफील इसकी अनुमति न दे। नियोक्ता अक्सर कर्मचारी का पासपोर्ट अपने पास रख लेते थे और यह तय करते थे कि वे कब नौकरी बदल सकते हैं या देश छोड़ सकते हैं।
यह सिस्टम विशेष रूप से महिलाओं के लिए बेहद खराब साबित हुआ। कई भारतीय महिलाओं ने शारीरिक और यौन शोषण की शिकायत की। 2017 में गुजरात और कर्नाटक की महिलाओं के साथ हुए अमानवीय व्यवहार के मामले भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद ही सुलझ पाए थे। एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं ने इस व्यवस्था को मानव तस्करी का एक रूप बताया था।
क्राउन प्रिंस की विजन 2030 और सुधार की पहल
सऊदी अरब का यह फैसला क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की महत्वाकांक्षी ‘विजन 2030’ सुधार योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य सऊदी अरब की वैश्विक छवि को सुधारना, अर्थव्यवस्था में विविधता लाना और विदेशी निवेश को आकर्षित करना है। कफाला सिस्टम को खत्म करके सऊदी अरब ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह मानवाधिकारों और श्रमिक कल्याण के प्रति गंभीर है।
अंतर्राष्ट्रीय दबाव और भविष्य की दिशा
इस फैसले के पीछे अंतरराष्ट्रीय दबाव, मानवाधिकार संगठनों की लगातार रिपोर्टें और विदेशी नागरिकों की नाराजगी एक बड़ी वजह रही। क्राउन प्रिंस ने देश की वैश्विक साख और निवेश के माहौल को सुधारने के लिए कफाला सिस्टम को खत्म करने का फैसला लिया। यह कदम निश्चित रूप से सऊदी अरब को एक आधुनिक और प्रगतिशील देश के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह व्यवस्था अब भी कुवैत, ओमान, लेबनान और कतर जैसे कुछ अन्य खाड़ी देशों में जारी है, जहां विदेशी श्रमिकों को अभी भी इसी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सऊदी अरब का यह कदम इन देशों को भी अपनी श्रमिक नीतियों की समीक्षा करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
Pls read:US: H-1B वीजा पर ट्रंप के $100,00 सालाना फीस के फैसले को US चैंबर ऑफ कॉमर्स ने कोर्ट में चुनौती दी