SC: बच्चा दुर्घटना में होता है दिव्यांग तो क्षतिपूर्ति कुशल श्रमिक की मानते दी जाएगी- सुप्रीम कोर्ट – The Hill News

SC: बच्चा दुर्घटना में होता है दिव्यांग तो क्षतिपूर्ति कुशल श्रमिक की मानते दी जाएगी- सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के एक दुर्घटना क्लेम मामले में सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव वाला फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी बच्चे की दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है या वह स्थायी रूप से दिव्यांग हो जाता है, तो क्षतिपूर्ति की गणना उसे कुशल श्रमिक मानते हुए की जाएगी। इस फैसले का असर देश भर में चल रहे मोटर दुर्घटना दावा प्रकरणों पर पड़ेगा।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का निर्देश?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि दुर्घटना के समय राज्य में कुशल श्रमिक का जो न्यूनतम वेतन होगा, उसे ही बच्चे की आय माना जाएगा। अब तक दुर्घटना में बच्चे की मृत्यु या स्थायी दिव्यांगता की स्थिति में क्षतिपूर्ति की गणना ‘नोशन इनकम’ (काल्पनिक आय, जो वर्तमान में 30 हजार रुपये प्रतिवर्ष है) के हिसाब से की जाती थी। इस नए फैसले के बाद, दावेदार व्यक्ति को न्यायाधिकरण के समक्ष न्यूनतम वेतन के संबंध में दस्तावेज पेश करने होंगे। यदि दावेदार ऐसा नहीं कर पाता है, तो इन दस्तावेजों को पेश करने की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की होगी।

अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि इस फैसले की प्रति सभी मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों को भेजी जाए, ताकि इन निर्देशों का सख्ती से पालन सुनिश्चित हो सके। यह कदम सुनिश्चित करेगा कि देशभर के सभी न्यायाधिकरण इस नए मापदंड का पालन करें और पीड़ितों को उचित न्याय मिल सके।

महत्वपूर्ण बदलाव और इसका असर

यह फैसला क्षतिपूर्ति गणना के मौजूदा तरीके में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाता है। वर्तमान में, मध्य प्रदेश में कुशल श्रमिक का न्यूनतम वेतन 14,844 रुपये मासिक यानी 495 रुपये प्रतिदिन निर्धारित है। इस नए फैसले के लागू होने से ऐसे मामलों में मिलने वाली क्षतिपूर्ति राशि में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला उन परिवारों के लिए एक बड़ी राहत है, जिन्होंने दुर्घटना में अपने बच्चों को खोया है या उन्हें स्थायी दिव्यांगता का सामना करना पड़ा है।

दुर्घटना दावा प्रकरण के वकील राजेश खंडेलवाल ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने कहा कि इसका असर पूरे देश में चल रहे दावा प्रकरणों पर पड़ेगा। यह फैसला यह सुनिश्चित करेगा कि बच्चों की जान या उनके भविष्य को हुए नुकसान के लिए अधिक यथार्थवादी और न्यायसंगत मुआवजा मिले।

कैसे सुप्रीम कोर्ट पहुंचा यह मामला?

यह मामला 14 अक्टूबर 2012 का है, जब इंदौर निवासी आठ वर्षीय हितेश पटेल अपने पिता के साथ सड़क पर खड़ा था। तभी एक वाहन ने उसे टक्कर मार दी, जिससे हितेश को गंभीर चोटें आईं। यह कहते हुए कि उसे स्थायी दिव्यांगता आई है, मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के समक्ष 10 लाख रुपये का क्षतिपूर्ति दावा प्रस्तुत किया गया।

शुरुआत में, न्यायालय ने यह मानते हुए कि हितेश को 30 प्रतिशत दिव्यांगता आई है, बीमा कंपनी को तीन लाख 90 हजार रुपये क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया। इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने हितेश की आयु सिर्फ आठ वर्ष होने के बावजूद क्षतिपूर्ति की राशि को बढ़ाकर आठ लाख 65 हजार रुपये कर दिया।

इस फैसले से असंतुष्ट होकर, मामला सुप्रीम कोर्ट में अपील हुआ। एक सितंबर को अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील को स्वीकार करते हुए क्षतिपूर्ति राशि को बढ़ाकर 35 लाख 90 हजार रुपये कर दिया। यह बढ़ोतरी सुप्रीम कोर्ट के नए दिशानिर्देशों के अनुरूप है, जिसमें बच्चे की आय को कुशल श्रमिक के न्यूनतम वेतन के बराबर माना गया है। यह फैसला बच्चों के अधिकारों और उनके भविष्य को सुरक्षित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।

 

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