चंडीगढ़। पंजाब की सियासत में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के भीतर का घमासान और तेज हो गया है। शिरोमणि अकाली दल ने नवगठित दल और उसके प्रधान, श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह पर तीखा हमला बोला है। पार्टी ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने ‘शिरोमणि अकाली दल’ के नाम पर कब्जा करने की कोई भी कोशिश की तो उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि शिअद चुनाव आयोग की 1996 की अधिसूचना के अनुसार एक पंजीकृत और मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल है और इसके नाम का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इसी बीच, डॉ. चीमा ने एक और अहम जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आम आदमी पार्टी सरकार द्वारा लैंड पूलिंग पॉलिसी वापस लेने के फैसले के बाद, पार्टी अब 1 सितंबर से प्रस्तावित पक्का मोर्चा नहीं लगाएगी। इसके बजाय, पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में 31 अगस्त को श्री अकाल तख्त साहिब में ‘शुकराना अरदास’ (धन्यवाद की प्रार्थना) की जाएगी।
‘वखरा चूल्हा पार्टी’ पर बोला हमला
नवगठित पार्टी को ‘वखरा चूल्हा पार्टी’ (अलग चूल्हा पार्टी) करार देते हुए डॉ. चीमा ने दावा किया कि इस समय शिअद के 100 प्रतिशत प्रतिनिधि पार्टी के साथ हैं। उन्होंने कहा, “अलग हुए समूह का एक भी सदस्य उस पार्टी का सदस्य नहीं है जिसका वे होने का दावा कर रहे हैं। शिअद के सभी प्रतिनिधियों को पिछली कार्यकारिणी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद हुए विधिवत चुनाव के बाद चुना गया है।” उन्होंने तर्क दिया कि अलग हुए समूह के सदस्यों ने पार्टी के सदस्यता अभियान में भाग ही नहीं लिया था, जिसमें प्रत्येक सदस्य को 10 रुपये का सदस्यता शुल्क जमा करके पांच साल के लिए सदस्यता लेनी होती है। इसलिए, उन्हें अपनी बैठक को शिअद का ‘प्रतिनिधि सत्र’ कहने का कोई नैतिक या कानूनी अधिकार नहीं है।
अकाल तख्त के हुक्मनामे के उल्लंघन का आरोप
डॉ. चीमा ने ज्ञानी हरप्रीत सिंह पर श्री अकाल तख्त साहिब के 2 दिसंबर, 2024 को जारी हुक्मनामे का उल्लंघन करने का भी गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इस हुक्मनामे में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि अलग हुए समूह को अपनी दुकान बंद कर देनी चाहिए और पंथक हितों को ध्यान में रखते हुए शिअद में विलय कर लेना चाहिए। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “ऐसा करने के बजाय, ज्ञानी हरप्रीत ने एक नई दुकान खोल ली। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस व्यक्ति ने सर्वोच्च सिख संस्था के जत्थेदार के रूप में कार्य किया है, वह स्वयं द्वारा लिखे गए निर्देशों का ही पालन नहीं कर रहा है।”
इस बयानबाजी से साफ है कि अकाली दल के दोनों धड़ों के बीच पार्टी के नाम और विरासत को लेकर लड़ाई और तीखी हो गई है, जो आने वाले दिनों में कानूनी और राजनीतिक रूप ले सकती है।