किसी भी अन्य देश की तुलना में हमारे देश में पहले से ही बच्चे दो भाषाएं जैसे कि अपनी मातृभाषा और अंग्रेजी दोनों ही सीखते हैं। जहां घर में वे ज्यादातर अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते हैं, वहीं स्कूलों में बच्चों के लिए अंग्रेजी भी एक अनिवार्य भाषा बनती जा रही है। अंग्रेजी सीखने की अनिवार्यता बच्चों के लिए इसलिए भी है, क्योंकि यह न सिर्फ विश्वभर में बोली और समझी जाने वाली भाषा है, बल्कि यह डिजिटल दुनिया की भी भाषा है।
कुछ का ममना है की अगर बच्चो को ज्यादा भाषाए सिखाएगे तो वह कुछ नहीं सीख पाएगा, पर विशेषज्ञो के मानना है, बच्चे एक ऐसा कच्चा घड़ा है जिसे जैसे बनाओ वो वही रूप ले लेता है। बच्चो का दिमाग तीन साल की उम्र से ही नयी भाषाओ को समझने ओर सीखने मे बड़ो के मुक़ाबले 80 प्र्तिशन तेज सीखने की क्षमता रखता है। नई-नई भाषाओं को सीखने से आपका बच्चा न सिर्फ इन भाषाओं बल्कि भाषाओं के माध्यम से उस देश और वहां के लोगों की संस्कृति से भी रू-ब-रू हो पाता है। यहां तक कि कई अध्ययनों से भी पता चला है कि द्विभाषी लोग अधिक रचनात्मक और विचारक होते हैं। इसीलिए अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा भी अन्य भाषा को अच्छे से सीख पाए तो उसके लिए आप उसके बड़े होने का इंतजार न करें, बल्कि कम उम्र से ही उसे नई-नई भाषाओं से मुखातिब करें। साथ ही ध्यान रहे कि किसी भी भाषा को बेहद आसानी से नहीं सीखा जा सकता। इसीलिए आप खुद में और बच्चे में भी संयम को बनाए रखने का प्रयास करते रहें।