नई दिल्ली। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू कर दी गई है। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे जस्टिस वर्मा के मामले में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने महाभियोग के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही, उन्होंने आरोपों की गहन जांच के लिए एक उच्च-स्तरीय तीन सदस्यीय समिति के गठन की भी घोषणा की है।
लोकसभा अध्यक्ष द्वारा गठित इस जांच समिति में न्यायपालिका और कानून के क्षेत्र की प्रतिष्ठित हस्तियों को शामिल किया गया है। समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस अरविंद कुमार करेंगे। उनके साथ मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता वी.बी. आचार्य सदस्य के रूप में शामिल होंगे। अध्यक्ष ओम बिरला ने अपने बयान में कहा, “मुझे यह प्रस्ताव नियमों के अनुरूप मिला है, जिसके बाद मैंने इस समिति का गठन किया है।” इस घोषणा के साथ ही एक सिटिंग जज को पद से हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया का पहला चरण पूरा हो गया है।
क्या है पूरा मामला?
यह पूरा विवाद इस साल 14 मार्च को तब शुरू हुआ, जब जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लग गई। आग बुझाने के लिए पहुंचे दमकल विभाग के कर्मचारियों को परिसर में बने आउट हाउस से बड़ी मात्रा में अधजले नोट मिले। शुरुआत में यह मामला दबा रहा, लेकिन इसका खुलासा तब हुआ जब कुछ दिनों बाद सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने एक अप्रत्याशित फैसले में जस्टिस वर्मा का तबादला दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट करने की सिफारिश कर दी।
कोलेजियम के इस फैसले के बाद यह मामला मीडिया की सुर्खियों में आ गया और तेजी से तूल पकड़ने लगा। मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने भी इसका संज्ञान लिया और विभिन्न उच्च न्यायालयों के तीन न्यायाधीशों की एक आंतरिक समिति गठित कर जांच के निर्देश दिए।
इस बीच, जस्टिस वर्मा के तबादले ने एक और विवाद को जन्म दे दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने उनके तबादले का जोरदार विरोध किया। एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने न केवल इस फैसले की आलोचना की, बल्कि इसके खिलाफ हड़ताल की भी घोषणा कर दी, जिससे न्यायिक कामकाज पर भी असर पड़ा।
जस्टिस वर्मा की सफाई
चारों तरफ से घिरने के बाद जस्टिस वर्मा ने अपनी ओर से दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर सफाई भी पेश की। उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को “बेतुका, अविश्वसनीय और हास्यास्पद” बताया। उन्होंने तर्क दिया कि कोई भी व्यक्ति इतनी बड़ी मात्रा में नकदी को स्टाफ क्वार्टर या आउट हाउस जैसी खुली और आसानी से सुलभ जगह पर नहीं रखेगा, जहां किसी की भी पहुंच हो सकती है। हालांकि, उनकी इस सफाई का जांच प्रक्रियाओं पर कोई असर नहीं पड़ा। अब लोकसभा अध्यक्ष द्वारा समिति के गठन के बाद यह मामला एक औपचारिक और संवैधानिक जांच के दायरे में आ गया है, जिसकी रिपोर्ट जस्टिस वर्मा का भविष्य तय करेगी।