नई दिल्ली। पंजाब और हरियाणा के बीच दशकों से चले आ रहे सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद को सुलझाने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने एक नया और बड़ा प्रस्ताव पेश किया है। मंगलवार को केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल द्वारा बुलाई गई एक उच्च-स्तरीय बैठक में मान ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि एसवाईएल नहर के मुद्दे को हमेशा के लिए खत्म कर, इसके बजाय चिनाब नदी के पानी का उपयोग किया जाए ताकि दोनों राज्यों की पानी की जरूरतों को पूरा किया जा सके।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछली बैठक में केंद्र ने सूचित किया था कि पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि निलंबित कर दी गई है। इससे भारत के लिए एक बड़ा अवसर खुला है कि वह चिनाब नदी (जो संधि के तहत पाकिस्तान को दी गई पश्चिमी नदियों में से एक है) के पानी का उपयोग कर सके। मान ने सुझाव दिया कि केंद्र को अब चिनाब के पानी को रणजीत सागर, पोंग या भाखड़ा जैसे भारतीय बांधों की ओर मोड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस अतिरिक्त पानी को लाने के लिए पंजाब में नई नहरों और बुनियादी ढांचे का निर्माण करना होगा। मान ने प्रस्ताव रखा कि इन नहरों का उपयोग पहले पंजाब की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाए, और राज्य की आवश्यकताएं पूरी होने के बाद, इसी नहर प्रणाली के माध्यम से हरियाणा और राजस्थान को भी पानी की आपूर्ति की जा सकती है।
SYL को ठंडे बस्ते में डालने की पुरजोर वकालत
भगवंत मान ने एसवाईएल नहर के मुद्दे को पूरी तरह से खारिज करते हुए कहा कि यह पंजाब के लिए एक “भावनात्मक मुद्दा” है और इसके निर्माण से राज्य में कानून-व्यवस्था की गंभीर स्थिति पैदा हो सकती है, जिसका असर हरियाणा और राजस्थान पर भी पड़ेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि आज की तारीख में एसवाईएल के लिए जमीन उपलब्ध नहीं है। इसके बजाय, उन्होंने दो अन्य समाधान सुझाए:
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शारदा-यमुना लिंक: उन्होंने लंबे समय से प्रस्तावित शारदा-यमुना लिंक परियोजना को प्राथमिकता पर शुरू करने की मांग की, ताकि सरप्लस पानी को यमुना नदी में स्थानांतरित किया जा सके। इससे हरियाणा और दिल्ली की पानी की जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा, जिससे एसवाईएल की आवश्यकता ही समाप्त हो जाएगी।
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यमुना के पानी में हिस्सेदारी: मान ने यह भी मांग की कि पंजाब को यमुना नदी के पानी में हिस्सेदार बनाया जाए। उन्होंने कहा कि 1994 के यमुना जल बंटवारे के समझौते की समीक्षा 2025 के बाद होनी है, इसलिए पंजाब को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए और सरप्लस यमुना जल का 60% हिस्सा पंजाब को मिलना चाहिए।
पंजाब की जल समस्या और योगदान
मुख्यमंत्री ने आंकड़ों के साथ पंजाब की गंभीर जल स्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि पंजाब के 153 ब्लॉकों में से 115 (75%) अत्यधिक-दोहन (डार्क जोन) की श्रेणी में हैं, जबकि हरियाणा में यह आंकड़ा 61% है। उन्होंने कहा कि पंजाब अपने भूजल का 157% उपयोग कर रहा है, जो देश में सर्वाधिक है। इसके बावजूद, राज्य अपने नदी जल का लगभग 60% हिस्सा हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली जैसे गैर-तटवर्ती राज्यों को देता है।
मान ने जोर देकर कहा कि पंजाब देश की खाद्य सुरक्षा में अहम योगदान देता है, लेकिन इसकी कीमत उसे अपने बहुमूल्य भूजल से चुकानी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि पंजाब की कुल पानी की आवश्यकता 52 MAF (मिलियन एकड़-फीट) है, जबकि उपलब्धता केवल 26.75 MAF है। उन्होंने यह भी कहा कि जब नदियों में बाढ़ आती है तो उसका नुकसान अकेले पंजाब झेलता है, लेकिन फायदों में सभी राज्य हिस्सा लेते हैं, इसलिए बाढ़ से हुए नुकसान का मुआवजा भी भागीदार राज्यों को देना चाहिए।