देहरादून। उत्तराखंड में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के नतीजों ने एक दिलचस्प तस्वीर पेश की है। जहां एक ओर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने समग्र रूप से ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, वहीं दूसरी ओर पार्टी के कई बड़े नेताओं के परिजनों को जनता ने सिरे से नकार दिया है। इन नतीजों को भाजपा की ‘परिवारवाद’ की राजनीति के खिलाफ एक स्पष्ट संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
दिग्गजों के परिवार को मिली करारी हार
चुनाव परिणामों ने यह स्पष्ट कर दिया कि मतदाताओं ने पार्टी के नाम पर वोट दिया, लेकिन जब बात स्थानीय उम्मीदवारों की आई, तो उन्होंने दिग्गजों के परिवार के सदस्यों पर भरोसा नहीं जताया। हारने वाले प्रमुख नामों में शामिल हैं:
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नैनीताल: भाजपा विधायक सरिता आर्या के बेटे रोहित आर्या।
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सल्ट: विधायक महेश जीना के बेटे करन जीना (स्याल्दे बबलिया क्षेत्र पंचायत सीट)।
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बदरीनाथ: पूर्व विधायक राजेंद्र भंडारी की पत्नी रजनी भंडारी।
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लोहाघाट: पूर्व विधायक पूरन सिंह फर्त्याल की बेटी।
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लैंसडोन: विधायक दिलीप रावत की पत्नी।
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भीमताल: विधायक राम सिंह कैड़ा की बहू।
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नैनीताल: निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष बेला तोलिया।
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चमोली: भाजपा जिलाध्यक्ष गजपाल भर्तवाल।
सियासी विश्लेषकों की राय
यह नतीजे एक सियासी विडंबना भी पेश करते हैं, क्योंकि भाजपा अक्सर कांग्रेस पर परिवारवाद को लेकर हमलावर रहती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन चुनावों में मतदाताओं ने भाजपा के ‘परिवारवाद’ को खारिज कर दिया है। उनका यह भी मानना है कि यदि पार्टी ने इन सीटों पर परिजनों की जगह मजबूत और जमीनी दावेदारों को समर्थन दिया होता, तो चुनाव के नतीजे और भी बेहतर हो सकते थे।
पार्टी की ऐतिहासिक जीत का दावा
हालांकि, व्यक्तिगत सीटों पर परिजनों की हार के बावजूद, भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने समग्र प्रदर्शन को ऐतिहासिक बताया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, महेंद्र भट्ट ने कहा, “पंचायत चुनाव की यह जीत न केवल उत्साहवर्धक है बल्कि ऐतिहासिक भी है। भाजपा को 2019 में 200 सीटें मिली थीं, जिसमें हरिद्वार भी शामिल था। इस बार हमें हरिद्वार को छोड़कर 216 सीटें मिली हैं। यदि हरिद्वार की 44 सीटों को जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा 260 तक पहुंचता है।”
उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व की सराहना करते हुए दावा किया कि यह अब तक की सबसे बड़ी जीत है और प्रदेश के सभी जिलों में भाजपा का बोर्ड बनने जा रहा है।
कुल मिलाकर, पंचायत चुनाव के नतीजों ने भाजपा के लिए एक दोहरी तस्वीर पेश की है – एक तरफ पार्टी के लिए जश्न का माहौल है, तो दूसरी तरफ यह आत्ममंथन का भी समय है कि जनता स्थानीय स्तर पर राजनीतिक विरासत को स्वीकार करने के मूड में नहीं है।