शिमला।
जेएसडब्ल्यू ऊर्जा मामले में सुप्रीम कोर्ट से ऐतिहासिक जीत हासिल करने के बाद, हिमाचल प्रदेश की वर्तमान सरकार अब भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) परियोजनाओं से अपने लंबे समय से लंबित ऊर्जा बकाये के दावों को पूरी आक्रामकता और मजबूती से आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह महत्वपूर्ण मामला 29 जुलाई, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की एक नई पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
राज्य सरकार के एक प्रवक्ता ने आज यहां बताया कि मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में वर्तमान सरकार सभी बीबीएमबी परियोजनाओं से देय ऊर्जा बकाये को हासिल करने के लिए लगातार गंभीर और ठोस प्रयास कर रही है। प्रदेश सरकार 14 साल से भी अधिक समय से अपने अधिकारों के लिए यह लड़ाई लड़ रही है। यह बकाया नवंबर 1966 से या बाद की परियोजनाओं के चालू होने की तारीख से 7.19 प्रतिशत की दर से दावा किया जा रहा है।
इस लंबे समय से चले आ रहे दावे को मजबूती से आगे बढ़ाने के लिए, राज्य सरकार ने देश के शीर्ष वकीलों की एक टीम तैयार की है। सुप्रीम कोर्ट में प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल, पराग त्रिपाठी और जे.एस. अत्री के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश के महाधिवक्ता अनूप रतन और अतिरिक्त महाधिवक्ता वैभव श्रीवास्तव को नियुक्त किया गया है।
प्रवक्ता ने बताया कि 27 सितंबर, 2011 के शीर्ष अदालत के ऐतिहासिक फैसले के बाद, केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने बीबीएमबी को 1 नवंबर, 2011 से हिमाचल प्रदेश को 7.19 प्रतिशत की दर से बिजली की वास्तविक आपूर्ति शुरू करने का निर्देश दिया था। इसके अनुपालन में, मंत्रालय ने नवंबर 1966 से अक्टूबर 2011 तक की अवधि के ऊर्जा बकाये का एक विस्तृत ब्यौरा भी तैयार कर सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया था। इस ब्यौरे के अनुसार, राज्य बीबीएमबी परियोजनाओं से 13066 मिलियन यूनिट बिजली का हकदार है, जिसका बकाया पंजाब और हरियाणा से 60:40 के अनुपात में देय है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, यह मामला 14 वर्षों से अधिक समय से लंबित है।
प्रवक्ता ने आगे कहा कि शीर्ष अदालत के पहले के फैसले के बावजूद, भारत के अटॉर्नी जनरल और बिजली मंत्रालय द्वारा हिमाचल प्रदेश को देय बकाये के भुगतान की पद्धति के संबंध में कोई निर्णायक प्रस्तुति नहीं दी गई है। परिणामस्वरूप, मामले में बार-बार देरी हुई है और इसे अक्सर किसी न किसी तकनीकी या प्रक्रियात्मक आधार पर टाला जाता रहा है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अपने हक को सुरक्षित करने की अपनी प्रतिबद्धता पर दृढ़ है और इस प्रयास में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में सरकार प्रदेश के हितों की रक्षा के लिए हरसंभव कानूनी और प्रशासनिक कदम उठा रही है, ताकि हिमाचल को उसका दशकों पुराना अधिकार मिल सके।
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