नई दिल्ली। देश के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर राजधानी दिल्ली में आवारा कुत्तों के बढ़ते आतंक और उससे उत्पन्न गंभीर स्वास्थ्य खतरों पर देश की सर्वोच्च अदालत ने गहरी चिंता व्यक्त की है। कुत्तों द्वारा काटे जाने की लगातार बढ़ती घटनाओं और इसके परिणामस्वरूप रेबीज जैसे जानलेवा वायरस के प्रसार को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान (Suo Motu) लिया है। यह कदम एक ऐसी समस्या पर राष्ट्रीय ध्यान केंद्रित करता है जो लंबे समय से सार्वजनिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
न्यायाधीशों की पीठ ने जताई चिंता
यह मामला सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ के समक्ष आया। पीठ ने एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक के दिल्ली संस्करण में प्रकाशित एक रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसमें कुत्तों के काटने से जुड़ी दिल दहलाने वाली घटनाओं और झकझोर देने वाले आंकड़ों का विवरण था। न्यायालय ने कहा कि रिपोर्ट दर्शाती है कि अकेले दिल्ली में ही हर दिन कुत्ते काटने की हजारों घटनाएं हो रही हैं, जिससे समाज में, खासकर बच्चों और बुजुर्गों के बीच भय का माहौल बन गया है।
पीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा, “यह एक अत्यंत गंभीर मुद्दा है। रेबीज का खतरा तेजी से बढ़ रहा है और हमारे बच्चे तथा बुजुर्ग इसके सबसे आसान शिकार बन रहे हैं। हम इस समस्या को और अधिक नजरअंदाज नहीं कर सकते।” इसी आधार पर, पीठ ने मामले पर स्वतः संज्ञान लेने का निर्णय किया, जिसका अर्थ है कि अदालत ने किसी याचिका की प्रतीक्षा किए बिना, मामले की गंभीरता को देखते हुए स्वयं कार्रवाई शुरू की है।
मामला मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाएगा
स्वतः संज्ञान लेने के बाद, जस्टिस पारदीवाला और महादेवन की पीठ ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि इस मामले को उस अखबार की रिपोर्ट के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के समक्ष प्रस्तुत किया जाए। अब मुख्य न्यायाधीश यह तय करेंगे कि इस मामले को एक जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया जाए और इसकी सुनवाई के लिए एक उपयुक्त पीठ का गठन किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट के इस हस्तक्षेप से यह उम्मीद जगी है कि अब केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और नगर निगमों जैसे स्थानीय निकायों को इस समस्या से निपटने के लिए जवाबदेह बनाया जा सकेगा। न्यायालय भविष्य में आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने, उनके टीकाकरण अभियान को तेज करने और मानव-पशु संघर्ष को कम करने के लिए एक संतुलित और व्यापक नीति बनाने हेतु दिशा-निर्देश जारी कर सकता है।
अब सभी की निगाहें मुख्य न्यायाधीश के अगले कदम पर टिकी हैं, जिससे इस गंभीर सार्वजनिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे पर एक स्थायी और मानवीय समाधान की दिशा में ठोस प्रगति हो सके।
Pls read:SC: 2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट- 12 आरोपियों के बरी होने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक