Uttarakhand: पेंशन देनदारी का मामला सुलझा- उत्तर प्रदेश ने उत्तराखंड को दिए 1600 करोड़, सीएम धामी ने जताया आभार

मुख्यमंत्री बोले – दोनों राज्यों के बीच बेहतर समन्वय और संवाद का है यह परिणाम

देहरादून।

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बीच सालों से लंबित परिसंपत्ति विवादों के निस्तारण की दिशा में एक बड़ी सफलता मिली है। उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तराखंड को दो वित्तीय वर्षों की पेंशन हिस्सेदारी के रूप में 1600 करोड़ रुपये की धनराशि का भुगतान किया है। इस महत्वपूर्ण कदम के लिए मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हार्दिक आभार व्यक्त किया है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि दोनों राज्यों के बीच बेहतर समन्वय और निरंतर संवाद के चलते परिसंपत्तियों एवं दायित्वों से जुड़े लंबे समय से लंबित मुद्दों का तेजी से निस्तारण हो रहा है। यह भुगतान इसी सकारात्मक संवाद का परिणाम है।

क्या है पूरा मामला?

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से ही दोनों राज्यों के बीच कर्मचारियों की पेंशन देनदारियों को लेकर विवाद चल रहा था। महालेखाकार, उत्तर प्रदेश द्वारा वित्तीय वर्ष 2021-22 और 2022-23 में दोनों राज्यों के बीच पेंशन पर हुए खर्च का आकलन किया गया था।

  • वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए: उत्तर प्रदेश सरकार पर 952.26 करोड़ रुपये की देयता आंकी गई थी।

  • वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए: यह देयता 1309.00 करोड़ रुपये थी।

इस प्रकार, इन दो वित्तीय वर्षों के लिए उत्तर प्रदेश पर कुल 2261.26 करोड़ रुपये की देनदारी बनती थी। इसी कुल देयता के सापेक्ष, उत्तर प्रदेश सरकार ने जुलाई 2024 में 1600 करोड़ रुपये की धनराशि का भुगतान उत्तराखंड सरकार को करने का आदेश जारी कर दिया है। यह भुगतान भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के माध्यम से अन्तर्राज्यीय समायोजन (Inter-state Adjustment) द्वारा किया गया है।

उत्तराखंड को मिली बड़ी आर्थिक राहत

उत्तर प्रदेश से मिली यह 1600 करोड़ रुपये की धनराशि उत्तराखंड के लिए एक बड़ी आर्थिक राहत है। इससे राज्य सरकार को अपनी वित्तीय योजनाओं को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि इस तरह के सकारात्मक कदमों से दोनों “बड़े भाई-छोटे भाई” राज्यों के बीच संबंध और मजबूत हो रहे हैं और भविष्य में भी अन्य लंबित मुद्दों के शीघ्र समाधान की उम्मीद है। यह कदम दोनों राज्यों के नेतृत्व के बीच मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और सहयोगात्मक भावना को दर्शाता है।

 

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