नई दिल्ली। साल 2020 में गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष के बाद भारत और चीन के रिश्तों में आई कड़वाहट को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को बीजिंग में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात की। यह गलवान घटना के बाद दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच हुई पहली औपचारिक भेंट है, जिसे सीमा विवाद के कारण ठंडे पड़े द्विपक्षीय संबंधों को फिर से सामान्य बनाने की एक बड़ी कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
विदेश मंत्री जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए चीन की यात्रा पर हैं। इस मुलाकात के बाद उन्होंने इसे भारत-चीन संबंधों के लिए एक अहम पड़ाव बताया। उन्होंने ट्वीट कर जानकारी दी, “आज सुबह बीजिंग में राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से उन्हें शुभकामनाएं दीं। मैंने उन्हें हमारे द्विपक्षीय रिश्तों में हुई हालिया प्रगति से अवगत कराया। इस दिशा में हमारे नेताओं के मार्गदर्शन को मैं बहुत महत्व देता हूं।”
यह मुलाकात इसलिए भी खास है क्योंकि यह अक्टूबर 2024 में हुए एक महत्वपूर्ण समझौते के बाद हुई है, जिसमें दोनों देशों ने पूर्वी लद्दाख के दो अंतिम विवादित बिंदुओं—डेमचोक और देपसांग—से अपनी सेनाओं को पीछे हटाने पर सहमति जताई थी। इस सैन्य वापसी समझौते ने दोनों देशों के बीच संवाद के बंद दरवाजों को फिर से खोलने का मार्ग प्रशस्त किया, जो गलवान संघर्ष के बाद से लगभग ठप पड़ गया था।
अपनी यात्रा के दौरान, जयशंकर ने सोमवार को अपने चीनी समकक्ष वांग यी से भी मुलाकात की और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव को और कम करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “पिछले नौ महीनों में हमने अपने संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में अच्छी प्रगति की है। अब हमें सीमा से जुड़े अन्य पहलुओं, विशेषकर तनाव कम करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।” इसके साथ ही, जयशंकर ने चीन से यह भी आग्रह किया कि वह व्यापार में बाधाएं पैदा न करे और महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से बचे।
विश्लेषकों का मानना है कि इन उच्च-स्तरीय मुलाकातों का एक बड़ा उद्देश्य इस साल के अंत में होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए एक सकारात्मक माहौल तैयार करना है, ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन का दौरा कर सकें। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के जून में हुए किंगदाओ दौरे के बाद जयशंकर की यह यात्रा इस बात का स्पष्ट संकेत है कि दोनों परमाणु-सशस्त्र पड़ोसी देश अपने मतभेदों को विवाद और प्रतिस्पर्धा को टकराव में बदलने से बचना चाहते हैं।
हालांकि, रिश्तों को पूरी तरह से सामान्य करने की राह में अभी भी कुछ बड़ी बाधाएं मौजूद हैं। दलाई लामा के उत्तराधिकार का संवेदनशील मुद्दा और हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान चीन का पाकिस्तान को समर्थन देना, ऐसे कुछ प्रमुख कारण हैं जो दोनों देशों के बीच तनाव पैदा करते हैं। इन चुनौतियों के बावजूद, यह मुलाकात रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने की एक नई और गंभीर कोशिश मानी जा रही है।
Pls read:China: चीन द्वारा पाकिस्तान को जे-35 विमान देने की खबर सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय