Punjab: अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार पहुंचे हाईकोर्ट, SGPC पर लगाया आंतरिक राजनीति का शिकार बनाने का आरोप – The Hill News

Punjab: अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार पहुंचे हाईकोर्ट, SGPC पर लगाया आंतरिक राजनीति का शिकार बनाने का आरोप

चंडीगढ़। सिख पंथ की सर्वोच्च संस्थाओं में चल रहा विवाद अब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट पहुंच गया है। श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार और श्री हरिमंदिर साहिब के वर्तमान हेड ग्रंथी, ज्ञानी रघबीर सिंह ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के खिलाफ एक याचिका दायर की है। उन्होंने आरोप लगाया है कि वह एसजीपीसी की आंतरिक खींचतान और राजनीति का शिकार हो रहे हैं और उन्हें आशंका है कि उन्हें हेड ग्रंथी के पद से भी हटाया जा सकता है। इस हाई-प्रोफाइल मामले पर हाईकोर्ट में कल यानी एक जुलाई को सुनवाई होगी।

याचिका में क्या हैं आरोप?

ज्ञानी रघबीर सिंह ने अपनी याचिका में दलील दी है कि उन्हें डर है कि एसजीपीसी बिना किसी पूर्व सूचना या उनका पक्ष सुने, उन्हें श्री हरिमंदिर साहिब के हेड ग्रंथी के पद से हटा सकती है। उन्होंने अदालत से एसजीपीसी के अध्यक्ष, सचिव और प्रबंधक को उनके खिलाफ किसी भी प्रकार की अनुचित या पक्षपातपूर्ण कार्रवाई करने से रोकने का आग्रह किया है।

विवाद की जड़ और सुखबीर बादल का कनेक्शन

याचिका में इस पूरे विवाद की जड़ 2 दिसंबर, 2024 को ज्ञानी रघबीर सिंह द्वारा दिए गए एक अहम आदेश को बताया गया है। याचिका के अनुसार, जब वह श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार थे, तब उन्होंने बेअदबी के मामलों में “नैतिक विफलता” के आधार पर शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल को पार्टी नेतृत्व से हटाने का आदेश जारी किया था।

ज्ञानी रघबीर सिंह का आरोप है कि इसी आदेश से प्रभावित पक्षों को संतुष्ट करने और राजनीतिक दबाव के चलते एसजीपीसी ने मार्च 2025 में उन्हें जत्थेदार पद से हटाकर श्री हरिमंदिर साहिब का हेड ग्रंथी नियुक्त कर दिया था। अब उनका दावा है कि एसजीपीसी के कुछ गुट उन्हें एक बार फिर निशाना बना रहे हैं और उन्हें हेड ग्रंथी के पद से भी जबरन हटाने की कोशिश में लगे हैं।

उन्होंने अदालत से अनुरोध किया है कि वह न केवल उनके वर्तमान पद की गरिमा की रक्षा करे, बल्कि यह भी सुनिश्चित करे कि उन्हें एसजीपीसी की आंतरिक राजनीति का शिकार न बनाया जाए। ज्ञानी रघबीर सिंह का यह कदम एसजीपीसी के भीतर चल रही कथित राजनीतिक दखलअंदाजी को एक बार फिर सतह पर ले आया है, और अब सभी की निगाहें हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी हैं।

 

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