तिरुपति बालाजी मंदिर में बाल दान की परंपरा सदियों पुरानी है। इस प्रथा के पीछे दो प्रमुख पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं:
पहली कथा:
एक बार भगवान वेंकटेश्वर नीलाद्रि पर्वत पर विश्राम कर रहे थे। देवी नीलाद्रि ने देखा कि उनके सिर पर एक धब्बा है। उन्होंने अपने बाल तोड़कर उस धब्बे को ढक दिया। जब भगवान वेंकटेश्वर जागे तो उन्होंने देवी नीलाद्रि के त्याग को देखकर प्रसन्न हुए और उन्हें उनके बाल लौटा दिए। लेकिन देवी नीलाद्रि ने बाल वापस नहीं लिए और कहा कि भविष्य में भक्त उनके बाल दान करेंगे जिससे उनके पाप और कष्ट दूर होंगे और मनोकामनाएँ पूर्ण होंगी।
दूसरी कथा:
एक अन्य कथा के अनुसार, प्राचीन काल में भगवान बालाजी की मूर्ति पर चींटियों का एक बड़ा टीला लग गया था। एक गाय रोज़ाना उस टीले पर दूध देती थी। गाय के मालिक को गुस्सा आया और उसने कुल्हाड़ी से गाय पर वार किया, जिससे भगवान बालाजी के सिर पर भी चोट लग गई और उनके बाल गिर गए। देवी नीलाद्रि ने अपने बाल भगवान वेंकटेश्वर के सिर पर रख दिए जिससे उनकी चोट ठीक हो गई। भगवान वेंकटेश्वर ने प्रसन्न होकर कहा कि जो भी भक्त उनके लिए बाल दान करेगा, उसे मनचाहा फल मिलेगा।
बाल दान का महत्व:
तिरुपति मंदिर में दान किए गए बालों से विग और हेयर एक्सटेंशन बनाए जाते हैं, जिन्हें बेचकर प्राप्त धनराशि का उपयोग मंदिर के благотворительность कार्यों और लोगों की मदद के लिए किया जाता है।
अस्वीकरण: इस लेख में दी गई जानकारी पौराणिक कथाओं और मान्यताओं पर आधारित है। दैनिक जागरण इस लेख में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। पाठकों से अनुरोध है कि वे अपने विवेक का प्रयोग करें।
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