
मुंबई: महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बनी महायुति सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। सरकार गठन के बाद अब मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर गठबंधन के भीतर मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे कुछ बड़े मंत्रालयों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से नाराज बताए जा रहे हैं। उनकी नाराजगी इस कदर है कि वे दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ हुई महत्वपूर्ण बैठक में भी शामिल नहीं हुए।
बड़े पदों के लिए अड़े शिंदे
उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, महायुति के सहयोगियों के साथ मंत्रालयों के बंटवारे पर चर्चा करने के लिए दिल्ली में भाजपा नेतृत्व से मिले। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, इस बैठक में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख अजित पवार भी मौजूद थे, लेकिन शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे की अनुपस्थिति ने सभी को चौंका दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शिंदे अभी भी बड़े मंत्रालयों को लेकर अड़े हुए हैं और अपनी मांगों से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
इन मंत्रालयों पर शिवसेना की नजर
शिंदे के करीबी सूत्रों के अनुसार, उनकी पार्टी को केवल शहरी विकास मंत्रालय जैसा एक ही बड़ा मंत्रालय दिया जा रहा है, जो उन्हें मंजूर नहीं है। शिंदे पहले गृह मंत्रालय चाहते थे, लेकिन भाजपा द्वारा इसे देने से इनकार करने के बाद अब उनकी नजर राजस्व, लोक निर्माण, आवास और उद्योग जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों पर है। शिवसेना इन मंत्रालयों को अपने पास रखना चाहती है ताकि सरकार में उनकी पकड़ मजबूत बनी रहे।
शिंदे की नाराजगी के कारण
शिंदे की नाराजगी का एक और बड़ा कारण भाजपा की वह शर्त है, जिसमें यह कहा गया है कि पिछली सरकार में जिन नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, उन्हें मंत्री नहीं बनाया जाएगा। इस शर्त से शिंदे के कई समर्थक मंत्री पद से वंचित हो सकते हैं, जिससे शिंदे खेमे में बेचैनी है।
दिल्ली में हुई बैठकों का दौर
बीती रात देवेंद्र फडणवीस ने अमित शाह से मंत्रिपरिषद विस्तार पर चर्चा की। उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से भी मुलाकात की, लेकिन इन सभी बैठकों में एकनाथ शिंदे की अनुपस्थिति ने यह संकेत दिया कि महायुति में सब कुछ ठीक नहीं है। शिवसेना द्वारा मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी गठबंधन में तनाव बना हुआ है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर जारी यह खींचतान महायुति सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। शिंदे की नाराजगी से गठबंधन में दरार पड़ सकती है, जिससे सरकार की स्थिरता पर सवाल उठ सकते हैं। उनका मानना है कि भाजपा और शिवसेना दोनों को जल्द ही इस मुद्दे पर एक समझौते पर पहुंचना होगा, ताकि सरकार सुचारू रूप से चल सके।
विपक्ष का हमला
विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार पर निशाना साधा है। उनका कहना है कि महायुति सरकार सिर्फ सत्ता के लिए बनी है और इसमें आपसी तालमेल का अभाव है। विपक्षी नेताओं ने यह भी कहा कि यह गठबंधन जनता के हितों की रक्षा करने में विफल रहेगा।
आगे क्या होगा?
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि भाजपा और शिवसेना इस मुद्दे पर कैसे समझौता करते हैं। क्या शिंदे अपनी मांगों पर अड़े रहेंगे या फिर कोई बीच का रास्ता निकलेगा? यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या महायुति सरकार इस आंतरिक कलह को दूर कर पाती है या नहीं। इस राजनीतिक उथल-पुथल का महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या असर होगा, यह आने वाले समय में पता चलेगा।
संभावित समाधान
गठबंधन के भीतर इस तनाव को कम करने के लिए कुछ संभावित समाधान हो सकते हैं:
-
मंत्रालयों का पुनर्वितरण: भाजपा और शिवसेना के बीच मंत्रालयों का नए सिरे से बंटवारा किया जा सकता है। शिवसेना को कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालय दिए जा सकते हैं, ताकि शिंदे की नाराजगी को शांत किया जा सके।
-
समन्वय समिति: महायुति सरकार के भीतर एक समन्वय समिति का गठन किया जा सकता है। यह समिति गठबंधन के सभी दलों के बीच आपसी तालमेल बनाए रखने में मदद कर सकती है।
-
वरिष्ठ नेताओं की मध्यस्थता: भाजपा और शिवसेना के वरिष्ठ नेता आपस में बैठकर इस मुद्दे का समाधान निकालने की कोशिश कर सकते हैं। वे दोनों पक्षों को सुनने के बाद एक ऐसा समझौता करा सकते हैं जो दोनों को स्वीकार्य हो।
-
शिंदे के साथ सीधी बातचीत: भाजपा का शीर्ष नेतृत्व एकनाथ शिंदे के साथ सीधी बातचीत कर सकता है ताकि उनकी शिकायतों को सुना जा सके और उनका समाधान किया जा सके।