नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली चरम मौसमी घटनाएँ भारत के जनजीवन पर विनाशकारी असर डाल रही हैं। सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के पहले नौ महीनों में 274 दिनों में से 255 दिनों में गर्मी, ठंडी हवाएँ, चक्रवात, बिजली, भारी वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन का सामना करना पड़ा। इन घटनाओं के कारण 3,238 लोगों की जान गई, 32 लाख हेक्टेयर फसलें प्रभावित हुईं, 2,35,862 घर और इमारतें नष्ट हुईं और 9,457 पशु मारे गए।
भारत का नौवां सबसे सूखा महीना
‘स्टेट ऑफ एक्सट्रीम वेदर रिपोर्ट इन इंडिया’ के मुताबिक, चरम मौसमी घटनाओं का 2024 में 2022 और 2023 की तुलना में ज्यादा गंभीर असर पड़ा। 2024 ने कई जलवायु रिकॉर्ड भी बनाए। 1901 के बाद से जनवरी भारत का नौवां सबसे सूखा महीना था। फरवरी में देश ने 123 सालों में अपना दूसरा सबसे अधिक न्यूनतम तापमान दर्ज किया। मई में चौथा उच्चतम औसत तापमान रिकार्ड किया गया और जुलाई, अगस्त और सितंबर सभी ने 1901 के बाद से अपना उच्चतम न्यूनतम तापमान दर्ज किया।
बिना रुके चरम मौसम का सामना
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, ‘पहले जो घटनाएं सदी में एक बार होती थीं, वे अब हर पांच साल या उससे भी कम समय में हो रही हैं।’ उन्होंने बताया कि पिछले नौ महीनों में बिजली गिरने और तूफान से लेकर 32 राज्यों तक हर तरह की घटनाएं देखी गई हैं। लगातार हुई मानसूनी वर्षा के कारण विभिन्न क्षेत्रों में आई बाढ़ में 1,021 लोगों की मौत हुई।
असम सबसे बुरी तरह प्रभावित
केवल असम में 122 दिनों में भारी वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन हुआ, जिससे राज्य के बड़े हिस्से जलमग्न हो गए और समुदाय तबाह हो गए। पूरे देश में बाढ़ के कारण 1,376 लोगों की जान गई। मध्य प्रदेश में हर दूसरे दिन चरम मौसम का अनुभव किया गया, जो देश में सबसे अधिक है। केरल में सबसे अधिक 550 मौतें दर्ज हुईं, इसके बाद मध्य प्रदेश (353) और असम (256) का स्थान रहा।
मध्य क्षेत्र में सबसे अधिक मौतें
आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक घर बर्बाद हुए (85,806), जबकि महाराष्ट्र, जहाँ 142 दिनों में चरम मौसमी घटनाएं देखी गईं, वहां देश भर में प्रभावित फसल क्षेत्र का 60 प्रतिशत से अधिक क्षतिग्रस्त हुआ। इसके बाद मध्य प्रदेश (25,170 हेक्टेयर) का स्थान रहा। मध्य क्षेत्र में सबसे अधिक 1,001 मौतें हुईं।
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