नई दिल्ली। अरावली पर्वतमाला को लेकर देशभर में मचे बवाल और भ्रम की स्थिति के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने सरकार का रुख पूरी तरह साफ कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अरावली क्षेत्र में किसी भी तरह की कोई छूट नहीं दी गई है और न ही भविष्य में दी जाएगी। एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में भूपेंद्र यादव ने अरावली रेंज को सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक बताया और कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है कि ये पहाड़ हरे भरे रहें और उनकी सुरक्षा के लिए कड़े मानक स्थापित किए जाएं।
अरावली की परिभाषा को लेकर चल रहे विवाद पर उन्होंने कहा कि दुनिया भर के भूविज्ञानी रिचर्ड मर्फी की परिभाषा को मानते हैं जिसके अनुसार 100 मीटर ऊंची पहाड़ी को पहाड़ माना जाता है। उन्होंने समझाया कि पहाड़ की परिभाषा केवल उसकी ऊंचाई तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें चोटी से लेकर जमीन के स्तर तक की पूरी 100 मीटर की संरचना शामिल होती है जहां उसका आधार टिका होता है। यादव ने दावा किया कि इस परिभाषा के तहत अरावली का 90 प्रतिशत क्षेत्र पूरी तरह सुरक्षित है।
खनन के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अब तक स्पष्ट परिभाषा न होने के कारण खनन परमिट में गड़बड़ियां हो रही थीं। उन्होंने बताया कि अरावली का 58 प्रतिशत हिस्सा कृषि भूमि है और वहां शहर गांव और बस्तियां भी हैं। इसके अलावा लगभग बीस प्रतिशत संरक्षित क्षेत्र है जहां आप कुछ भी नहीं कर सकते। नई माइनिंग लीज के बारे में उन्होंने साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट की योजना के अनुसार पहले एक साइंटिफिक प्लान बनाया जाएगा जिसमें आईसीएफआरई भी शामिल होगा। उसके बाद ही किसी अनुमति पर विचार किया जाएगा। यादव ने दो टूक कहा कि 0.19 प्रतिशत से ज्यादा इलाके में माइनिंग संभव नहीं होगी और अवैध माइनिंग को पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा।
भूपेंद्र यादव ने ग्रीन अरावली वॉल आंदोलन की सराहना की और कहा कि अरावली की सुरक्षा के लिए केवल पेड़ लगाना ही काफी नहीं है। उन्होंने समझाया कि यहां की इकोलॉजी में घास, झाड़ियां और औषधीय पौधे भी शामिल हैं जो पूरे इकोलॉजिकल सिस्टम का हिस्सा हैं। उन्होंने बिग कैट अलायंस का उदाहरण देते हुए कहा कि बाघों का संरक्षण तभी संभव है जब उनके शिकार और वनस्पति का पूरा तंत्र सुरक्षित रहे। इसी उद्देश्य से मंत्रालय ने 29 से ज्यादा नर्सरी स्थापित की हैं और पूरे अरावली रेंज में स्थानीय वनस्पतियों का अध्ययन किया गया है।
शहरीकरण की आशंकाओं को खारिज करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अरावली में शहरीकरण की कोई योजना नहीं है और यह योजना सिर्फ सुरक्षा के लिए है। उन्होंने कहा कि राज्यों को नई परिभाषा के आधार पर कड़े नियम बनाने होंगे। राजसमंद और उदयपुर जैसे बड़े माइनिंग जिलों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि वहां भी एक प्रतिशत से कम इलाके में ही माइनिंग की इजाजत दी जा सकती है और वह भी तब जब राज्य सरकारें कोई ठोस प्लान बनाएंगी। उन्होंने भरोसा दिलाया कि कोर्ट जो भी नियम तय करेगा सरकार उसका पूरी तरह पालन करेगी।