नई दिल्ली. पाकिस्तान सरकार और संयुक्त राष्ट्र के बीच एक बार फिर जुबानी जंग तेज हो गई है। मामला पाकिस्तान के नए 27वें संविधान संशोधन से जुड़ा है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टुर्क ने इस संशोधन की आलोचना की थी, जिसे पाकिस्तान ने सख्त लहजे में खारिज कर दिया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने दो टूक कहा है कि संविधान में बदलाव करना उनका सार्वभौमिक अधिकार है और यह काम वहां की चुनी हुई संसद का है। मंत्रालय ने यह भी नसीहत दी कि एक अंतरराष्ट्रीय संस्था के अधिकारी को राजनीतिक पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर बयानबाजी करने से बचना चाहिए।
रविवार को जारी एक बयान में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि वे मानवाधिकारों और कानून के शासन का पूरा सम्मान करते हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी की टिप्पणी जमीनी हकीकत से कोसों दूर है। पाकिस्तान का कहना है कि वे मानवाधिकार प्रमुख के पद का सम्मान करते हैं, लेकिन बदले में उन्हें भी पाकिस्तान की संसद और उसके फैसलों का सम्मान करना चाहिए। मंत्रालय ने आरोप लगाया कि इस तरह के बयान गलतफहमी पैदा करते हैं और पक्षपातपूर्ण लगते हैं।
दरअसल, शुक्रवार को वोल्कर टुर्क ने पाकिस्तान में पारित किए गए इस संशोधन को लेकर चिंता जताई थी। उन्होंने इसे जल्दबाजी में उठाया गया कदम बताया था। टुर्क का कहना था कि इतना बड़ा बदलाव करने से पहले कानूनी विशेषज्ञों और सिविल सोसायटी से पर्याप्त चर्चा नहीं की गई। उन्होंने यह भी आशंका जताई थी कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होगी और सेना की जवाबदेही पर सवाल खड़े होंगे।
इस 27वें संशोधन के जरिए पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 243 में बड़े बदलाव किए गए हैं। इसके तहत ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी यानी सीजेसीएससी का पद खत्म कर दिया गया है। इसकी जगह अब ‘चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज’ यानी सीडीएफ का नया पद बनाया गया है। इतना ही नहीं, इसमें एक फेडरल कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट बनाने का प्रस्ताव है, जिससे सुप्रीम कोर्ट की कुछ शक्तियां कम हो जाएंगी। खबरों के मुताबिक, पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर पहले सीडीएफ होंगे। उन्हें भारत के साथ मई में हुए तनाव के बाद फाइव-स्टार फील्ड मार्शल रैंक दिया गया था।
पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, सीजेसीएससी का पद गुरुवार को आधिकारिक रूप से खत्म हो चुका है, लेकिन सरकार ने अभी तक सीडीएफ की नियुक्ति का औपचारिक नोटिफिकेशन जारी नहीं किया है। यह संशोधन पाकिस्तान में एक बड़ी राजनीतिक बहस का मुद्दा बना हुआ है। 12 नवंबर को जब संसद की संयुक्त समिति ने इसे मंजूरी दी थी, तभी से विपक्ष इसे सुप्रीम कोर्ट की ताकतों को कम करने की साजिश बता रहा है। बहरहाल, पाकिस्तान के इस कड़े रुख से यह साफ है कि वह अपने आंतरिक मामलों और विधायी प्रक्रियाओं में किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार करने के मूड में नहीं है।
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