नई दिल्ली।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय उत्पादों पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाकर कुल टैरिफ को 50% किए जाने के फैसले ने भारत में एक बड़ा राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। इसी सिलसिले में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष, मल्लिकार्जुन खरगे ने गुरुवार को इस कदम को केंद्र की मोदी सरकार की ‘बड़ी विदेश नीति की विफलता’ करार देते हुए तीखा हमला बोला है।
यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब अमेरिका ने भारत द्वारा रूस से तेल की खरीद जारी रखने के विरोध में यह दंडात्मक टैरिफ लगाया। पहले से लागू 25% शुल्क के साथ अब यह कुल 50% हो गया है, जो 7 अगस्त से प्रभावी है।
‘भ्रमित और कमजोर कूटनीति का नतीजा’
मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि ट्रंप का यह कदम ऐसे समय में आया है जब भारत की कूटनीति कमजोर और भ्रमित नजर आ रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस संकट से निपटने में पूरी तरह से नाकाम रहे हैं और अब ट्रंप भारत पर दबाव बना रहे हैं और उसे धमका रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा कटाक्ष करते हुए खरगे ने कहा, “आप अमेरिका से व्यापार समझौता नहीं कर पाए। आपके मंत्री महीनों से बातचीत की बात कर रहे थे, कुछ तो वॉशिंगटन में डेरा डाले बैठे थे। इसके बावजूद कुछ नहीं हुआ और अब यह बड़ा झटका आया है, लेकिन आप चुप हैं।” उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “इस बार आप इस विदेश नीति की विफलता का जिम्मा 70 साल की कांग्रेस सरकारों पर भी नहीं डाल सकते।”
प्रधानमंत्री की चुप्पी पर उठाए सवाल
खरगे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर एक पोस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार छह महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद अमेरिका के साथ कोई व्यापार समझौता करने में विफल रही। खरगे ने याद दिलाया कि जब 2024 में ट्रंप ने BRICS को ‘मृत’ कहा था और 100% टैरिफ की धमकी दी थी, तब भी प्रधानमंत्री चुप रहे थे।
आर्थिक प्रभाव पर गहरी चिंता जताई
कांग्रेस अध्यक्ष ने इस फैसले के गंभीर आर्थिक परिणामों पर भी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा, “भारत का अमेरिका को निर्यात लगभग ₹7.51 लाख करोड़ (2024) का है। 50% टैरिफ से भारत पर लगभग ₹3.75 लाख करोड़ का भारी-भरकम आर्थिक बोझ पड़ेगा।”
उन्होंने उन क्षेत्रों को भी गिनाया जिन पर सबसे ज्यादा मार पड़ेगी। खरगे के अनुसार, कृषि, एमएसएमई (MSME), डेयरी, इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, रत्न एवं आभूषण, दवाइयां, पेट्रोलियम और कपड़ा उद्योग को इस फैसले से सबसे ज्यादा नुकसान होगा, जिससे लाखों नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। इस मुद्दे पर सरकार की चुप्पी और विपक्ष के तीखे सवालों ने देश में एक बड़ी बहस छेड़ दी है।