चंडीगढ़: लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब में अपने संगठनात्मक ढांचे को दुरुस्त करने पर गंभीरता से ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है। 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी में एक बार फिर प्रदेश कार्यकारिणी के गठन की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के भीतर बढ़ती गुटबाजी को रोकना है, जिसके लिए एक बार फिर ‘एक अध्यक्ष और चार कार्यकारी अध्यक्ष’ के पुराने फॉर्मूले पर विचार किया जा रहा है।
आठ साल से नहीं बनी प्रदेश कार्यकारिणी
यह हैरान करने वाली बात है कि पंजाब कांग्रेस में प्रदेश स्तरीय कार्यकारिणी का गठन 2016 के बाद से हुआ ही नहीं है। अंतिम बार जब कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रदेश अध्यक्ष थे, तब कार्यकारिणी का गठन किया गया था। उनके बाद पार्टी ने तीन अध्यक्ष बदले, लेकिन हर बार प्रदेश कार्यकारिणी के गठन की फाइल दिल्ली स्थित केंद्रीय कार्यालय में ही अटक कर रह गई। अब प्रदेश प्रभारी भूपेश बघेल इस प्रक्रिया को लेकर खासे सक्रिय नजर आ रहे हैं और बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने पर जोर दिया जा रहा है।
क्या फिर लौटेगा पुराना फॉर्मूला?
पार्टी सूत्रों के अनुसार, आलाकमान 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने की रणनीति पर विचार कर रहा है। यह फॉर्मूला नया नहीं है। 2021 में जब नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, तब भी इसी नीति को अपनाया गया था। उस समय जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधते हुए संगत सिंह गिलजियां (ओबीसी), कुलजीत नागरा (जट सिख), सुखविंदर सिंह डैनी (एससी) और पवन गोयल (हिंदू) को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था।
हालांकि, यह प्रयोग पूरी तरह विफल रहा था, क्योंकि सिद्धू समेत तीनों कार्यकारी अध्यक्ष खुद विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे, जिसके कारण वे संगठनात्मक जिम्मेदारियों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाए।
गुटबाजी और वड़िंग के नेतृत्व पर सवाल
विधानसभा चुनाव में हार के बाद जब अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग को कमान सौंपी गई, तो उनके साथ नौ सदस्यों की एक टीम बनाई गई। लेकिन गुटबाजी के चलते यह टीम भी बिखर गई। कार्यकारी अध्यक्ष भारत भूषण आशु, परगट सिंह और कुशलदीप सिंह ढिल्लों ने इस्तीफा दे दिया, जबकि सुंदर शाम अरोड़ा पार्टी छोड़कर चले गए। वर्तमान में वड़िंग समेत कार्यकारिणी में मात्र पांच सदस्य ही बचे हैं।
पार्टी आलाकमान इस बात से चिंतित है कि राजा वड़िंग संगठन में सक्रिय होने के बावजूद गुटबाजी को रोकने में नाकाम रहे हैं। वहीं, कई वरिष्ठ नेता वड़िंग को अध्यक्ष पद से हटाने की मांग भी कर रहे हैं, क्योंकि उनका कार्यकाल तीन साल से अधिक हो चुका है और अब वह लुधियाना से सांसद भी बन गए हैं।
कांग्रेस की पहली प्राथमिकता गुटबाजी को खत्म कर सभी खेमों को एक साथ लाना है। इसी सिलसिले में प्रदेश प्रभारी भूपेश बघेल ने हाल ही में दिल्ली में पंजाब के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठकें की हैं, जिसके परिणाम जल्द ही एक नए संगठनात्मक ढांचे के रूप में सामने आ सकते हैं।
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