नई दिल्ली: साल 2008 के मालेगांव बम धमाके मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत के इस बहुप्रतीक्षित फैसले ने जहाँ एक ओर कानूनी लड़ाई पर विराम लगा दिया है, वहीं इसने एक नया राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। फैसले के आते ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बीच ‘भगवा आतंकवाद’ के नैरेटिव को लेकर तीखी बयानबाजी शुरू हो गई है।
अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष यह तो साबित कर पाया कि मालेगांव में धमाका हुआ था, लेकिन यह सिद्ध करने में पूरी तरह विफल रहा कि जिस मोटरसाइकिल में बम रखा गया था, उसके लिए आरोपी जिम्मेदार थे। इसी आधार पर सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया।
फैसले के तुरंत बाद, भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोला। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “हिंदू कभी आतंकी नहीं हो सकता। कांग्रेस ने सिर्फ वोटबैंक की राजनीति के लिए भगवा आतंकवाद का झूठा नैरेटिव गढ़ा और निर्दोषों पर फर्जी केस थोपे।” उन्होंने आगे कहा कि सोनिया गांधी, पी. चिदंबरम और सुशीलकुमार शिंदे जैसे कांग्रेस नेताओं को सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए हिंदुओं से माफी मांगनी चाहिए। मालवीय ने अपने पोस्ट का अंत “गर्व से कहो हम हिंदू हैं” के नारे से किया।
दूसरी ओर, इस फैसले पर गहरी निराशा जताते हुए AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने जांच एजेंसियों और सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने एक्स पर लिखा, “मालेगांव विस्फोट मामले का फैसला निराशाजनक है। विस्फोट में छह नमाजी मारे गए और लगभग 100 घायल हुए। उन्हें उनके धर्म के कारण निशाना बनाया गया।” ओवैसी ने जानबूझकर की गई घटिया जांच को बरी होने का कारण बताते हुए सवाल किया, “उन छह लोगों की हत्या किसने की?” उन्होंने पूछा कि क्या मोदी और फडणवीस सरकारें इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगी, जैसा उन्होंने मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में किया था।
ओवैसी ने 26/11 हमले में शहीद हुए तत्कालीन एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे का भी जिक्र किया, जिन्होंने इस साजिश का पर्दाफाश किया था। उन्होंने भाजपा सांसद (साध्वी प्रज्ञा) के उस विवादास्पद बयान की भी याद दिलाई जिसमें उन्होंने करकरे को श्राप देने की बात कही थी। ओवैसी ने तंज कसते हुए कहा, “दुनिया याद रखेगी कि इसने (सरकार ने) एक आतंकवाद के आरोपी को सांसद बनाया।”
इस तरह, अदालत के फैसले ने भले ही कानूनी तौर पर इस मामले को समाप्त कर दिया हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में ‘भगवा आतंकवाद’ के नैरेटिव और जांच प्रक्रिया पर बहस को एक बार फिर तेज कर दिया है।
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