देहरादून।
उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस, दोनों ही दलों के लिए हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनाव किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं हैं। हरिद्वार को छोड़कर प्रदेश के 12 जिलों में दो चरणों में मतदान संपन्न हो चुका है और अब सभी की निगाहें 31 जुलाई को आने वाले नतीजों पर टिकी हैं। यह चुनाव न केवल गांवों की ‘छोटी सरकार’ का फैसला करेंगे, बल्कि यह भी तय करेंगे कि राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में किस राजनीतिक दल और किस दिग्गज नेता का दबदबा है।
यह चुनाव सीधे तौर पर पार्टी के चुनाव चिन्ह पर नहीं लड़े गए हैं, लेकिन दोनों ही दलों ने अपने-अपने समर्थित प्रत्याशियों को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। इन चुनावों के परिणाम 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एक महत्वपूर्ण लिटमस टेस्ट माने जा रहे हैं, जिससे यह पता चलेगा कि ग्रामीण मतदाताओं का रुझान किस ओर है।
भाजपा: मुख्यमंत्री धामी ने संभाला मोर्चा
सत्ताधारी भाजपा ने इन चुनावों में जीत सुनिश्चित करने के लिए नगर निकाय चुनावों की तर्ज पर एक संगठित रणनीति अपनाई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद इस अभियान की कमान संभाली और दोनों मंडलों, गढ़वाल और कुमाऊं में सक्रिय रूप से प्रचार किया। उनके साथ-साथ उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी, जिन्हें जिलों का प्रभारी बनाया गया था, और सभी सांसदों ने भी ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पूरी ताकत लगाई। यह चुनाव मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व और उनकी सरकार की ग्रामीण नीतियों की एक बड़ी परीक्षा है। भाजपा के लिए यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि ग्रामीण मतदाताओं को कैसे साधा जा सकता है, जो 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए उनकी रणनीति तय करेगा।
कांग्रेस: क्षत्रपों के सहारे पैठ मजबूत करने की कोशिश
वहीं, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सत्ताधारी दल की किलेबंदी को भेदने और गांवों में अपनी पैठ मजबूत करने के लिए अपने क्षेत्रीय क्षत्रपों पर अधिक भरोसा किया है। प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के साथ-साथ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल जैसे कद्दावर नेताओं की प्रतिष्ठा भी इन चुनावों से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है। कांग्रेस ने प्रत्याशियों के चयन और प्रचार की जिम्मेदारी अपनी ‘समन्वय समिति’ को सौंपी, जिसमें लगभग सभी बड़े नेता और विधायक शामिल हैं।
परिणाम तय करेंगे भविष्य की दिशा
इस चुनावी दंगल में भाजपा के 44 और कांग्रेस के 15 विधायकों के दमखम का भी पता चलेगा। जिला पंचायतों में सदस्यों के चुनाव के बाद, यही सदस्य जिला पंचायत अध्यक्षों और क्षेत्र पंचायत सदस्य ब्लॉक प्रमुखों का चुनाव करेंगे। इसलिए, दोनों ही दलों का लक्ष्य अधिक से अधिक सदस्य जिताकर जिला पंचायतों और ब्लॉक प्रमुखों के पदों पर कब्जा करना है। 31 जुलाई को जब परिणाम घोषित होंगे, तो यह साफ हो जाएगा कि त्रिस्तरीय पंचायतों में किस दल का बोलबाला रहता है या फिर निर्दलीय उम्मीदवार किंगमेकर की भूमिका में उभरते हैं। इन नतीजों का असर प्रदेश की आने वाली राजनीति पर पड़ना तय है।