नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में देश की सभी अदालतों को यह स्पष्ट निर्देश दिया है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही करने की असाधारण शक्ति का प्रयोग अत्यंत सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। पीठ ने जोर देकर कहा कि इस शक्ति का इस्तेमाल किसी को परेशान करने या प्रताड़ित करने के साधन के रूप में कतई नहीं होना चाहिए, बल्कि इसका एकमात्र उद्देश्य न्याय सुनिश्चित करना है।
यह अहम टिप्पणी न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति जायमाल्या बागची की पीठ ने पूर्ववर्ती दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 319 से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए की। यह धारा अदालत को यह विशेष अधिकार देती है कि वह किसी मुकदमे की सुनवाई के दौरान किसी भी ऐसे व्यक्ति को बतौर अभियुक्त तलब कर सकती है, जिसके खिलाफ अपराध में शामिल होने के सबूत सामने आते हैं, भले ही उसका नाम शुरुआती चार्जशीट या एफआईआर में न हो।
पीठ ने इस प्रावधान के महत्व और इसके दुरुपयोग की आशंका पर प्रकाश डालते हुए कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस शक्ति का प्रयोग अत्यंत सावधानी से किया जाना चाहिए, न कि लापरवाही से। इसका एकमात्र उद्देश्य न्याय को आगे बढ़ाना है, न कि किसी व्यक्ति को परेशान करने या कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने का साधन बनना।” अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को मुकदमे में शामिल करने का निर्णय ठोस सबूतों के आधार पर होना चाहिए, न कि केवल संदेह के आधार पर।
क्या था पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट का यह अहम फैसला एक अपील पर आया, जो इलाहाबाद हाई कोर्ट के पिछले साल जुलाई में दिए गए एक आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। मामला उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले से जुड़ा है, जहां साल 2017 में हुई एक हत्या के मामले में निचली अदालत ने सीआरपीसी की धारा 319 के तहत एक व्यक्ति को अभियुक्त के रूप में तलब करने के लिए समन जारी किया था। हालांकि, जब उस व्यक्ति ने इस समन को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी, तो हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया।
हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ मामले के मूल शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता की अपील को स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए निचली अदालत द्वारा जारी किए गए समन आदेश को फिर से बहाल कर दिया है। इसका अर्थ है कि अब उस व्यक्ति को हत्या के इस मामले में मुकदमे का सामना करना होगा। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने संबंधित पक्षों को 28 अगस्त को निचली अदालत के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया है। अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए ट्रायल को 18 महीने की समय-सीमा के भीतर पूरा करने का सख्त आदेश भी दिया है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय धारा 319 के प्रयोग के लिए एक स्पष्ट दिशानिर्देश स्थापित करता है, ताकि न्याय सुनिश्चित हो और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग रोका जा सके।
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