नई दिल्ली। भारत और बांग्लादेश के बीच साझा सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक, महान फिल्मकार सत्यजीत रे के दादा उपेंद्रकिशोर रे चौधरी के पुश्तैनी घर को बचाने की मुहिम रंग लाई है। भारत सरकार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कड़े विरोध के बाद बांग्लादेश सरकार ने इस ऐतिहासिक इमारत को तोड़ने के अपने फैसले पर रोक लगा दी है। यह घर बांग्लादेश के मैमनसिंह जिले में स्थित है और इसे बंगाल के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।
बांग्लादेश सरकार ने इस धरोहर के भविष्य पर निर्णय लेने के लिए अब एक समिति का गठन किया है। यह समिति तय करेगी कि इस जर्जर हो चुकी इमारत का जीर्णोद्धार कैसे किया जाए या इसे किस रूप में संरक्षित किया जाए। यह फैसला दोनों देशों के सांस्कृतिक प्रेमियों के लिए एक बड़ी राहत बनकर आया है।
भारत ने जताया था कड़ा विरोध
इससे पहले, जब बांग्लादेश सरकार ने इस इमारत को तोड़ने का आदेश जारी किया था, तो भारत ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा था, “हमें बेहद अफसोस है कि महान फिल्मकार और साहित्यकार सत्यजीत रे के पूर्वजों का ऐतिहासिक घर, जो उनके दादा उपेन्द्रकिशोर रे चौधरी से जुड़ा है, उसे तोड़ा जा रहा है।” भारत ने इस इमारत को बंगाल की सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक बताते हुए इसे एक साहित्यिक संग्रहालय में बदलने का सुझाव दिया था। साथ ही, भारत ने इसके पुनर्निर्माण और संरक्षण के लिए हरसंभव मदद की पेशकश भी की थी।
वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस खबर को “बेहद पीड़ादायक” बताते हुए एक भावुक अपील की थी। उन्होंने बांग्लादेश सरकार और वहां के जागरूक नागरिकों से इस अनमोल धरोहर को बचाने के लिए आगे आने का आग्रह किया था।
बांग्लादेश सरकार का तर्क और मौजूदा तनाव
बांग्लादेश सरकार का शुरुआती तर्क था कि यह इमारत बहुत ही जर्जर और खतरनाक स्थिति में है, जिससे आसपास के लोगों को खतरा हो सकता है। उनकी योजना इसे हटाकर वहां एक नया कंक्रीट का सांस्कृतिक केंद्र बनाने की थी।
यह पूरा विवाद एक ऐसे समय में हुआ है जब भारत और बांग्लादेश के रिश्ते एक संवेदनशील और तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। पिछले साल शेख हसीना की सरकार गिरने और उनके भारत में शरण लेने के बाद से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक असहजता बनी हुई है। नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने जहाँ भारत से अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने को कहा है, वहीं भारत ने बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की है। इन तनावों के बीच, बांग्लादेश सरकार द्वारा इस सांस्कृतिक धरोहर को बचाने का फैसला एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो यह दर्शाता है कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद साझा विरासत का सम्मान सर्वोपरि है।
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