उत्तर प्रदेश में जल्द ही विधानसभा चुनाव का एलान होने वाला है, लेकिन समूचे यूपी की जनता इस सवाल का जवाब जानने के लिए उत्सुक है कि उनके सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस बार चुनाव कहां से लड़ेंगे? चूंकि वे देश के इकलौते संन्यासी मुख्यमंत्री है, लिहाज़ा वे यूपी की जिस भी सीट से चुनाव लड़ेंगे, वो देश की सुर्खी तो बनेगी ही, क्योंकि उसके सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि धार्मिक मायने भी महत्वपूर्ण होंगे. इसलिये सवाल ये उठ रहा है कि गुरु गोरखनाथ की गद्दी संभालते हुए जिस गोरखपुर से वे लगातार पांच बार लोकसभा पहुंचे हैं, वही सीट उनकी पहली पसंद होगी या श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या को चुनेंगे या फिर श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा से वे इस बार अपने राजनीतिक महाभारत का शंखनाद करने वाले हैं. योगी से जुड़े नजदीकियों की मानें तो ये उनका ऐसा सियासी तीर है जिसके बारे में मीडिया लाख कोशिश कर ले लेकिन फिलहाल वे ये नहीं बताने वाले कि उन्होंने निशाना कौन-सा चुन रखा है.
वैसे गोरखमठ के महंत और बीजेपी के तत्कालीन सांसद महंत अवैद्यनाथ ने जब योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, तो साल 1998 में पहली बार लोकसभा पहुंचने वाले योगी की उम्र महज़ 26 साल थी. उसके बाद से ही वे लगातार पांच बार गोरखपुर से सांसद निर्वाचित होते रहे. साल 2017 में जब वे यूपी के सरताज़ बने, तब उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया और उत्तरप्रदेश की विधान परिषद के सदस्य बन गए जिसके लिए उन्हें जनता के बीच जाने की जरूरत ही नहीं थी. लिहाज़ा, विधायक बनने के लिए वे पहली बार यूपी के सियासी अखाड़े में कूदेंगे. सो, देश के सबसे बड़े सूबे के मौजूदा मुख्यमंत्री का किसी भी सीट से चुनाव लड़ना तो अपने आप में ही एक बड़ी खबर होती है लेकिन अगर वह सीएम एक संन्यासी हो, तो फिर वह देश ही नहीं बल्कि दुनिया के मीडिया के लिए भी और बड़ी खबर बन जाती है. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि योगी आदित्यनाथ आज सिर्फ बीजेपी का नहीं बल्कि हिंदुत्व का एक बड़ा चेहरा हैं, इसलिये विदेशी मीडिया की नज़र भी इस पर लगी हुई है कि वे अयोध्या को चुनेंगे या फिर मथुरा से अपनी किस्मत आजमाने के बहाने श्रीकृष्ण जन्मभूमि का विवाद ख़त्म करने के लिए एक नए आंदोलन का बीजारोपण करेंगे.
हालांकि योगी आदियनाथ ने अभी तक अपना तुरुप का पत्ता नहीं खोला है कि आखिर वे कहां से चुनाव लड़ेंगे. जब पूछा जाता है कि उनकी पहली पसंद क्या है- गोरखपुर, अयोध्या या फिर मथुरा? तो उनका सियासी चतुराई वाला जवाब यही होता है कि “मेरी पसंद कोई नहीं है. मुझे पूरा राज्य पसंद है और पार्टी जहां भी फैसला करेगी, वहां से चुनाव लड़ूंगा. पूरा राज्य ही मेरा निर्वाचन क्षेत्र है.” लेकिन बीजेपी के कुछ अंदरुनी सूत्रों की बातों पर भरोसा करें, तो योगी को बृजभूमि से चुनावी-मैदान में उतारकर ये संदेश दिया जाएगा कि अयोध्या का स्वप्न साकार हुआ, अब मथुरा की बारी है. वैसे भी संघ व बीजेपी के एजेंडे पर अयोध्या, काशी और मथुरा आज से नहीं बल्कि सालों से है. अगर मथुरा संसदीय क्षेत्र में आने वाली किसी भी सीट से योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़ते हैं, तो इसका सीधा संदेश यही होगा कि अयोध्या की तर्ज़ पर ही अब संघ परिवार श्रीकृष्ण जन्मभूमि को भी मुक्त कराना चाहता है और इसके लिए हर तरह के विकल्प के आजमाने से वो पीछे नहीं हटेगा.
हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में भी योगी आदित्यनाथ से यही पूछा गया था कि मथुरा पर इन दिनों बहुत चर्चा हो रही है, तो आखिर वजह क्या है. तो उन्होंने जो जवाब दिया, उसके धार्मिक व सियासी बेहद गहरे मायने हैं, जिन्हें समझकर ही बीजेपी सूत्रों की बातों पर यकीन न करने की कोई वजह नहीं बनती. योगी का जवाब था- “मथुरा भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है. यह राधा रानी का घर है. मथुरा सप्त-पूरियों में से एक है. हम बृज तीर्थ विकास परिषद के माध्यम से मथुरा का विकास कर रहे हैं. साल 2017 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से यहां के सभी विवाद समाप्त हो गए हैं. जहां तक मेरे चुनाव लड़ने का सवाल है, तो मैं पार्टी द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय को स्वीकार करूंगा.
वैसे पिछले महीने की 6 तारीख को योगी आदित्यनाथ जब अपने गृह नगर गोरखपुर के मंदिर गए थे, तब पत्रकारों ने उनसे यही सवाल पूछा था कि आप किस सीट से चुनाव लड़ेंगे, तब भी उन्होंने इसका कोई खुलासा न करते हुए सिर्फ यही कहा था कि “पार्टी जिस सीट से कहेगी, वहां से विधानसभा चुनाव लड़ूंगा . मैंने हमेशा चुनाव लड़ा है. पार्टी का एक संसदीय बोर्ड है, जो यह तय करता है कि कौन कहां से चुनाव लड़ेगा. ” वैसे अगर योगी आदित्यनाथ मथुरा से चुनाव लड़ते हैं, तो ये मानना पड़ेगा कि यूपी की सियासत एक नया मोड़ ले रही है, जहां राजनीति पर धर्म का नियंत्रण और ज्यादा मजबूत हो जाएगा.